शिक्षा | Sikshha

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Sikshha by डॉ. ज़ाकिर हुसैन - Dr. Zakir Husainशिवशंकर शर्मा - Shivshankar Sharma

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शिवशंकर शर्मा - Shivshankar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिक्षा विकास करे । शिक्षा तो मानव-मस्तिष्क के पूण परिपोषण का नाम है | जिस तरह श्रादमी का शरीर एक छोटे-से बीज से शुरू होता हैं फिर उप- युक्त भोजन मिलने से क्रियाशीलता से सुख-शान्ति से तिब्तिदात श्रौर कीमिया के नियमों के श्रनुसार चलकर श्रद्भुत उन्नति कर लेता है उसी तरह मस्तिष्क का निर्माण श्रौर विकास उपयुक्त मानसिक पोषण पाकर झर उसके नियमों के अबुलार ही होंता है । देखना यह चाहिए कि मह्तिष्क को यह पोषण किन चीज़ों से मिल सकता है और उसके प्रभाव के नियम क्या हैं? तो निवेदन यह है कि मानसिक पोषण मिलता है संस्कृति तमइन 2 से संस्कृति की भौतिक श्रौर श्रमौतिक वस्तुओं से उदाइरणुतः समाज की शिक्षा -सम्बन्धी व्यवस्था से समाज की कलाश्रों से समान के घेय से समाज के उद्योग-घन्वे से सामाजिक चरित्र के सिद्धान्तों से समाज के क्रानून से समाज की .से समाज के महापुरुषों के जं।बन से समाज के पारिवारिक जीवन के ्रादर्शों से समाज के गाँवों-कस्तरों से समाज के नगरों के जीवन से समाज के शासन-विधान से फ़ौज से कवहदरियों से श्र समाज के मदरसों से । . दर यह बात याद रखने की हैं कि समाज नी सभी भौतिक दौर झभौतिक वस्तुएँ मनुष्य के मस्तिष्क की ही सम्पत्ति होती हैं । आदमी का मस्तिष्क अपने को इन वस्तुओं मैं व्यक्त करता है या यों कहिए कि मस्तिष्क अपने को श्रपने से बाहर ये रूप देता हे । इन चीज़ों में उस व्यक्ति-विशेष के मस्तिष्क का प्रमाव भी होता है जिसने उन्हें बनाया उस राष्ट्र या नस्ल का प्रभाव भी होता है जिससे कि बनाने वाले का सस्बन्ध था । उस देश- काल की परिस्थितियों का प्रभाव भी होता है जिनमें कि उसने यह पयीजञ बनाई थी । उन सबका प्रभाव यों कहिए कि चीज्ष में श्राकर छिप रहता है--सो जाता हैं । कोई नया मस्तिष्क जब उनका आ्रात्मीकरण कर लेता है तो ये छिपी हुई शक्तियाँ उमरती हैं--सोती हुई च्षमताएँ जगती हैं । सांस्कृतिक वस्तुश्नों की इन सोई हुई शक्तियों को फिर से किसी श्रादमी के मस्तिष्क में जगाने से उस मस्तिष्क का विकास होता है श्रौर किसी चीज्ञ से




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