सदाचार भाषा विवेचन सहित | Sadachar bhasha Vivechan Sahit
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.15 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१३ )
धर लय अधि्टीन में होते हैं ऐसे सब लिंगों के समुदाय का
नाम हिरिर्यगर्भ है, यह हिरणयगर्भ जीवों की उत्पत्ति, स्थिति,
और लय श्रादि अधिप्रान की सत्ता से करता है । दृत्ति उत्पन्न
होकर विपयाकार होती है और शधिष्ठान में समाप्त होती है
उसी का नाम ज्ञान हैं, ऐसा होने का कारण चिदानंद है जो
चुद्धि दृत्ति को जाम्रत अवस्था में विपयाकार करता है, स्वप्न में
संस्कार के रूप को धारण कराता है सुपुप्ति में झभाव रूप करता
है श्र समाधि में आनंदमय करता है वदद पखद्म है वह ही
चुद्धि का प्रेरक है वह स्वप्रकाश आत्मा है जिसका भर्गादि ऐसा
लक्षण है, जो तीनों काल में समान रहता है; ऐसा देव सब के
उत्पत्ति अन्त को जानता है, इससे चिद्रूप है जो सब को उत्पन्न
करने वाला है जिससे सब संसार फैलता है उस परमात्मा को
सचिता कहते दे । जो माया, अविद्या, जीव, शिव ादिक जगत्
भ्रम नाम रूप को भस्म करके अस्ति भाति ही वास्तविक है ऐसा
ज्ञान कराता है इसीसे भरग कहलाता है । श्रह्मानंद का सुख सर्वो-
तम है, श्रुति निरतिशय आनंद का कथन करती हैं और वह
नंद स्वतः सिद्ध है इसीसे वरेण्य कददलाता है । इस आनंद के
सिवाय अन्य 'आानंद नहीं है जो उस आनंद को प्राप्त दोता है
उसे तद्रुपता निश्चय होती है, वदद तैजस है । इस शोक में आत्मा
शब्द को गायत्री मंत्र की झपेक्षो अधिक युक्त किया है क्योंकि
उसंका पखट्म से अभेद है और वह परिपूर्ण है। आत्मा बुद्धि
'का प्रेरक, सब 'में व्याप्त सद्रप, एक ही देव चिद्रप से प्रकाशित
है वह जगत का हेतु सविता है। भर्ग शब्द नाम रूप का बाघ
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