पंचकोश विवेक | Panchkosh Vivek
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.28 MB
कुल पष्ठ :
272
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१३ )]
कभी देश सुधार इत्यादि की बातें हुआ करती' । दश दिन के
भीतर ही मैं सेठ जी का परम सित्र हो गया ! बहुत सी गुप्त बातें
भी वे मुक से दिल खोल कर काइने लगे । एक दिन मैंने सेठ जी
से इस प्रकार वात छेड़ी:--
मैं:-सेठ जी ! दुनियां में में जिसको देखता हूँ उसको दुःखी
दी देखता हूँ । कितने ही दिनों से में सुखी मनुष्य की खोज कर
कर रद हूँ । मेरी दृष्टि में दमारे देश में तो कोई सुखी नहीं
दिखाई देता । झापद्दी सुखो मादम होते हैं, देखने में झापको सब
प्रकार का सुख प्राप्त है ।' शदर भर में आपकी मान प्रतिष्ठा है;
घन भी आपके पास पूरा है; स्त्री भी अनुकूल है, इंइवर ने पुत्र
दे रखे हैं, आपका स्रभाव सरल और आस्तिक भाव वाला है;
जो कार्य श्राप करते हैं, विवेक विचार से करते हैं, दान पुण्य
और शाख्रीय क्रियायें भी आप करते हैं, नियमित रीति से 'इंश्वर
भजन भी किया करते हैं, इस शहर में तो एक 'आाप ही सुखी हैं ।
सच प्रकार से आप पर ईश्वर की कृपा है। आप धन्य हैं !
सेठजी:--(इदास मुख से ठंडी सांस लेकर) मैं ? नहीं ऐसा नही
है । जैसा तुम कहते हो, ऐसा सुखी मैं नहीं हूँ। संसार की दृष्टि में
मैं सुखी दिखाई देता हूँ परन्तु आंतर भाव से जेसा दुखी मैं हूँ
ऐसा दुखी इस शहर में क्या प्रथ्वी पर भी कोई न होगा
में:-(जी में) कैसे आश्वयं की बात है ! ,जिसको मैं
-संपूण सुखी समभता था, वह अपने को महदान् दुखी बताता है।
( सेठ जी से ).सेढ़ नी ! झाप पने को डुखी' बताते हैं 1 देखने ._
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