नरमेघयज्ञ मीमांसा | Narmegha Yagya Mimansa

Narmegha Yagya Mimansa by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हुए) दर्धाति ॥ १४ ॥शंतप० १३ । ४। २ ॥ भापाथनयप् में पुरुषों का नियोजन ' करने पश्चात्‌ फई संस्कार मन्त्रों द्वारा दोजाने पर एक कर्म पर्याग्नकंरण दीता है। जिसमें उत्तरयरेदि के अग्नि को लेकर अग्नीघ गमत्विजू उत्तरवेदि और यूपांदि सहित सबके चारों थोर घुमाता है [ जिसका अभिपाय यहभो हो सकता है कि इन पुरुषों को चारों ओर सदा ही प्रकाश रुप शान वि चमान रहे वे छोंग अज्ञानान्धफार में कभी न पड़े था इन का किसी भोरसे भज्ञावान्ध कार न वेरे ] इस पर्यश्िरुरण संस्कारके पश्चात्‌ दो छागादि के संशपन का भदसर यज्ञ मैं माना गया है। इसो लिये पुरुपों के भी संजपन को शंका किन्हीं छोगों को होना सम्भव देखक्रर फदा गया कि इन ब्राह्मणादि पुरुषों का संज्ञपन नहीं झरना चाहिये । इसी लिये पुरुपमेघ यज्ञ करने घाले यन्नमान से आाकाशवाणों था वेद चाणो कहती है कि तुम पुरुपका मत मारो 1 यदि पुरुप नाम मनुष्य का वघ्र कराओंगे तो पुरुप ही पुरुपका खाने 'लोंगे। इस लिये'परयज्ञि रण संहकार के पश्चात्‌ यजमान उन ब्राहाः णादि पुरुषों का छोड़देता है। और छोड़ ते से सलाद वन नामले घी की १८४ भाहु्ति दोम १८४ घ्रह्मा दि देवता भों के दे हो उन देवतागों का दूत करता करता है । इन आाहुतियों से




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