विज्ञान वार्ता | Vigyan-vaarta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.09 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विज्ञान क्या है श
नियमों का पता चला है। जहाँ पर किसी अ्रह्द की चाल में कुछ
अन्तर दिखलाई पड़ता है वहाँ पर हमको उसके कारण की खोज
करने पर पता चल जाता है कि कोई दूसरा पिर्ड उस पर
अपने आकर्षण का प्रभाव डाल रहा है। इसी प्रकार “यूरेनस
व्ञादि नए ग्रहों का पता चला हे ।
प्रकृति में जहाँ देखो वहाँ एकाकारता ही है । अति
नियमों के बन्धन में बैँधी हुई हे । सभी श्राकृतिक वस्तुएँ एक ही
अकार से काम करती हैं । इन काम करने के एक से प्रकारों को
नियम कहते हैं । विज्ञान प्रकृति के इन्हीं नियमों का अध्ययन
करता है; किन्तु यह अध्ययन अनाड़ी का सा अध्ययन नहीं
है । यह अध्ययन व्यवस्था और निश्वयता के साथ होता है ।
वैज्ञानिक ज्ञान 'बावन तोले पाव रत्ती' ठीक होता है, तभी तो
वह सौ वर्ष आगे तक के चन्द्र-प्हण और सूर्य-प्रहश का
यथार्थ समय बतला देता हे ।
विज्ञान के ज्ञान में व्यवस्था रहती हे; अर्थात् एक ज्ञान
का दूसरे ज्ञान से सम्बन्ध रहता है । साधारण आदमी केवल
यहीं जानता है कि चौमासों में घड़े का पानी ठंडा नहीं होता;
वैज्ञाचिक बतलायगा कि उन दिनों हवा में बहुत पानी रहता हे
ओर इसलिए हवा अपने में और अधिक पानी को नहीं ले सकती ।
बायु-मण्डल पानी को जल्दी-जल्दी उड़ने की गुंजाइश नहीं देता ।
पानी के उड़ने में कुछ शक्ति खर्च होती हे, वह शक्ति पानी की
गरमसी से आती है । .शक्ति का व्यय नहीं होता और पानी की
गरमी भी नहीं निकल पाती । लू के दिनों में हवा इस पानी से
उड़ने वाली भाप को जल्दी-जल्दी अ्रहण करती है और पानी
ठंडा हो जाता है । आप यदि स्पिरिट को हाथ में लें तो बड़ी
ठंडी मालूम होगी; चद्द इसीलिये कि स्पिरिट जल्दी उड़ जाती
है और उसके उड़ने में उसकी गरमी खर्च हो जाती है ।
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