स्वप्न द्रष्टा | Swapna Drasta

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Swapna Drasta by शिवचन्द्र नागर - Shivchandra Nagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क खेलना जानता है भर न टेनिस । यह तो उसे बहुत ही बड़ी आपत्ति थी । पर इन श्रापत्तियों की परपरा का इतने से ही भ्रन्त न था । उसे मित्रो की संगति में श्रानन्द आ्राता था । फैणन मौर र्वच्ददता झच्छो लगती थी । विवाह भ्रर्थात्‌ पराधीनता में फंसना-घपह उसकी घर्रणा थी । वह जब पत्ति का विचार करती तो केकी रुख था गमन दलाल ही उसके मस्तिष्क में आते थे । केको रूख दो घोडो की गाड़ी में कालेज श्राता था । टेनिस में उसका “स्मेदा' किसी से भी न मिलता था 1 प्रिकेट में उसकी बॉल किसी से भी न रुकती थी । वह एक से एक भड़कीछे कपड़े पहनता शर उसके घुंघराले वाल छटा से उसके सिर पर चने रहते थे । वह घोड़े पर भी चैठता था श्रौर सुलोचना के मन में यही आता था कि उसे यदि इस जैसा पति मिले तो उसकी सारा जीवन घोड़े पर कुदकियाँ मारते हुए ही बीत जाय । गपन दलाल दूसरी जाति का था । वह काला, पर ऊँचा, पतला-दुबला तथा सुन्दर था । वह क्रिकेट नद्दी खेंलता केवल टंनिस खेलता है, पर उसकी जवान मे जादू था । वह यदि हसता या बोलता तो सब के सब श्रानन्द से प्रफूल्लित हो उठते थे । वह छैले की तरह टेढी टोपी लगाता था । उसकी संवारी श्रौर कलपदार धोती ही उसकी खूबी का प्रददन करती थी । वह कालेज के प्रत्येंक श्रान्दोलन में आगे रहता श्र बम्वई की प्रत्येक नाटक कम्पनी का वह छभेच्छ ही था । उसके साथ तो जीवन एक श्रनन्त हास्य-कोप ही हो जायेगा । सच बात तो यह थी कि ऐसे महान व्यक्तियों को छोड कर इस देहाती गेंवार के साथ विवाह करे ! वह श्रेंचेरे थे ही हँसी । एक




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