सोलह सती | Solah Sati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चन्दूनबाला श्डै जललप्लपलाप बाधक ७. # जब्त यह सोच कर बाहुबली ने भगवान ऋषभदेव के पास जाने के लिए एक पैर श्रागे रक्खा । इतने में उनके चार घाती कर्म नष्ट हो गए। उन्हें केवलज्ञान दो गया । देवों ने पुष्पद्रष्टि की । चारों ओर जय जयकार होने सगा। दोनों चहिनें अपने स्थान पर लौंट गई । पृथ्वी पर घूम घूम कर उन्होंने झनेक भव्य आाणियों को प्रतिबोध दियो। झनेक भूले भटके जीवों को आत्मकल्याण का मांगे वताया। कठोर तप और शुभ ध्यान द्वारा झपने कर्मों को नष्ट करने का भी प्रयत्न किया। इस प्रकार आत्मा तथा दूसरों के कल्याण की साधना करते करते उनके घाती कमें नष्ट हो गए। केवलज्ञान और केवलदशन को प्राप्त कर झायुष्य पूर्ण होने पर दोनों ने मोक्ष रूपी परमपद को भाप्त किया। इन दोनों महासतियों की सदा वन्दन हो | चन्दनबाला (वसुमती) विहार पान्त में जो स्थान आज कल चम्पारन के नाम से प्रसिद्ध है प्राचीन समय में वहाँ चम्पापुरी नाम की विशाल नगरी थी। चह अडदेश की राजधानी थी। नगरी व्यापार का केन्द्र घन घान्य आदि से समृद्ध तथा सब प्रकार से रमणीय थी । वहाँ दधिवाहन नाम का राजा राज्य करता क़्स्ता था बह न्याय नीति तथा प्रजा पालन आदि गुणों का भण्डार था । प्रजा पर पुत्र के समान प्रेम रखता था श्र प्रजा भी उसे पिता मानती थी । ऐसे राजा को माप्त करके प्रजा अपने को धन्य समकती थी। दधिवाहन राजा की धारिणी नाम की रानी थी । पतिसेवा धर्म पर श्रद्धा उदारता हृदय की कोमलता आदि जितने गुण राजरानी में होने चाहिएं वे सब धारिणी में विद्यमान थे | राजा तथा रानी दोनों घ्मपरायण थे। दोनों में परस्पर अगाघ प्रेम था । दोनों विलासिता से दूर थे। राज्य को भोग्य वस्तु न समक




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