भारतीय दर्शन का इतिहास | Bhartiya Darshan Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.96 MB
कुल पष्ठ :
439
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे - Ramachandra Dattatrya Ranade
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूमिका
इस श्रार्थिक संकट और अति हंद्विता के युग में दर्शन जेंसे गंभीर विषय
दर्शनदास्र पर पुस्तक लिखन वाले से कोई सी व्यावहारिक
की आवश्यकता... बुद्धि का मनुष्य यकायक पूछ सकता है, 'इस की
श्रावश्यकता दी कया थी ?” चास्तव में इस प्रश्न का कोई संतोप-जनक
उत्तर नहीं दिया जा सकता । उत्तर तो बहुत हैं, पर उच का मूल्य प्रश्न-
कर्ता के अध्ययन और दौद्धिक योग्यता पर निर्भर दै। जिस का यह इढ़
विश्वास है कि मनुष्य केवल पशुओं में एक पु है श्रौर उस की धावश्य-
कताएं सोजन-धख्र तथा प्रजनन-कार्य ( सताचोत्पत्ति ) तक ही सीमित हैं,
उस के लिए उक्त प्रश्न का कोई उत्तर नही है । परंतु जो मनुष्य को केवल
पशु नहीं समसते, जिन्हें मानव-चुद्धि श्रौर मानव-हृद्य पर गर्व है, जो यह
मानते हैं कि मनुष्य सिर्फ रोटी खाकर जीवित नहीं रहता, सचुप्य सोचने-
वाला या विचारशील श्राणी है, उन के लिए इस प्रइन का उत्तर मिलना
कठिन सहीं है । वास्तव सें दे ऐसा प्रश्न ही नहीं करेगे । सनुप्य घ्ौर पशु
में सब से बडा सेद यह है कि मनुष्य जो कुछ करता है, उस पर विचार
करता है, जब कि पशु को इस प्रकार की जिज्ञासा कभी पीड़ित नहीं करती ।
मनुष्य रोहा है और रोने पर कविता लिखता है, हईँसता श्रोर हंसन के
कारणों पर विचार करता है, पत्नी के होठों को चूमता है श्ौर फिर सचाल
करता है, 'यद्द मोह तो नहीं है ?” पशु श्ौर मजुष्य दोनों को दुःख उठाना
पढ़ते हैं, दोनों की “भत्यु” होती है, परंतु 'दुशख' श्ौर “स्त्यु” पर विचार करना
सनुष्य का ही काम हैं । यद समसना सूल होगी कि दार्शनिक विचारों
को 'दुःख' झर “सत्यु” से कोई विशेष प्रेस होता है । चास्तव में दार्शनिक
'सत्यु' और ' दुःख पर इस लिए चिचार करते हैं कि ये जीवन के झंग हैं ।
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