ऋग्वेद भाष्यम् | Rigveda Bhashya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.75 MB
कुल पष्ठ :
504
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऋखेद: मं० ९. ॥ अ० ४ | सू० ७८ ॥ इ१५ |
कर
भावाथ---नो पुरुप परमात्माक जगत्कतूत्वम विश्वास करता है, ।
वह उसका उपासना द्वारा शुद्ध दांकर दव-पढदका पाप दांता है ॥१॥
..... इन्द्रांय सोम परिं पिच्यसे
चमिंचत्रक्षां ऊमिः कविरज्यसे वें ।
पूर्वीरहिं तें खुतयः सन्ति
यातंदे सहखम था हरयश्रमूपदः ॥ रा
इन्द्राय । सोम । पीरें । सिच्यसे | चूण्मि । दूण्वक्षांः ।
ऊर्मिः । कवि* । अज्यते । बनें । पूर्वी । हि। ते । ख़तयं । |
सन्ति । पात॑वे । सहसे अथवा । हरय' । चसूख्सद ॥२। _ |
पदा्थ।--( वने ) सक्तिमारगें ( कबिः ) सवेज्ञ: परमे- |
श्वरः (चमिः) मडष्ये: (अज्यसे) उपासिताजगदीशः ( चचक्षाः)
सबीन्तंयोम्यस्ति ( ऊर्मि ) आानम्दससुदरूपोस्ति च। ( सोम ) |
हे जगलियन्तः ! सवान् ( इन्द्राय ) कर्मयोगिन ( परिषिच्यसते ) |
लक्ष्यरूपण निर्मित: ( ते ) तर ( ख़ुतय) दक्तयः ( हि) यतः |
| ( पूर्वी: » प्राचीनाः सन्ति । ( यातव ) ग्मनशालिय कर्मयोगिने -
(सदखे ) बहुविधासु ( अश्वाः ) गतिशीलाइ ( चसूषदः) सेनासु
स्थित्वा ( हरयः ) विनाशिं धांरयन्यः ( सन्ति कंमंयोंगिनं
घाप्छुबान्त ॥ ः
नव
पदाथ--( बने ) भक्तिके मा्गमें (कवि ) स्वज्ञ परमात्मा
( चमिर 2- मनुष्योंके द्वारा ( अज्यसे ? उपासना किया जाता दे । बह
कह क ्,
( उचझा! ) सबका अन्तयांगी हे ! ( ऊर्मिं) आनन्दका समुद्र है । (सोम) |
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