प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता का इतिहास | Prachin Bharatvarsh Ki Sabhyta Ka Itihas

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Prachin Bharatvarsh Ki Sabhyta Ka Itihas  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झ १]. विक्रमादित्य श्र उसके उत्तराधिकारी ।.. [१३ किए हैं । इस प्रकार हमें संस्कृत के तीनों सर्वोत्तम गद्य के उपन्यासोां का समय विंदित होगया 1! वायुभट्ट के नाम के साथ मयूर के नाम का भी झनेक स्थान पर उल्लेख है श्रोर एक दुन्तकथा ऐसी है कि बाण ने मयूर की एक चराडी झथांत्‌ लड़ाकी क्या के साथ विवाह किया था । यह मयूर “मयूर शकत” नाम की पुस्तक का श्रस्थकार है । इससे झधिक प्रसिद्ध नाम भर्वूद्दारि का है। प्रोफेसर मेक्लमुतार साहब ने अपनी पक मनारशक टिप्पणी में थीन के यात्री इदूखिंग का प्रमाण देकर दिखलाया है कि भवेहारि की खुत्यु लगभग ६५० इस्वी में डुई झर्थाव ये समसिए कि श्यज्वार नीति और बैराग्य शतकें का श्न्थकार शोला दिव्य द्वितीय का समकालीन था । भट्टि काव्य जा कि व्याकरण सीखने का एक सहज श्रौर मनारज्षक ग्रन्थ है, हिन्दू विद्यार्थियों के भरदारि के शतकों की अपेक्षा अधिक ज्ञात है । भट्धि काव्य के शाष्यकार कन्दप्प, विद्याबिनाद, श्रीघर स्वामित झ्रादि इस ग्रंथ के भर्वहरि का बनाया इुआआ कहते हैं। शान्य शाष्यकारों ने भें के नाम के वहुधा भट्टि कहा है और सब बातें पर: विचार करने से यह बहुत सम्भव जान पड़ता है कि शतक का शोर भट्टि काव्य का श्रव्थकार एकहदी मचुष्य भ्तूं था भह्टि है । प्रोफेसर मेक्लमसूलर साहब ने श्रपने इस अनुमान के ट्रढ़ करने के लिये चीन के उपरोक्त यात्री का प्रमाण दिया है । कन्नोज के बड़े सम्नाद, शीलादित्य के समय में विद्या की ऐसी दन्नति थी वह पांचवें वर्ष झपने त्वाहासें में




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