भ्रम-नाशक | Bhram-Nashak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मननाशूक क हे . कथन ठीक नहीं है। क्योंकि यदि जाति को एज्य मानोंगे तब खुमको संसार के शकर/ करच्छ श्र: मच्छ इनकी भी ' प्रजा करनी पड़ेगी) बंयोंकि शुकर का) मच्छ का) 'कच्छ का श्रवतार भगवान्‌ ने लिंग है । जो शकरावतार में शुकरतव-जाति' थी वही सब शकरों में है छ-यवतार के शरीर में कच्छत्व-नाति थी वही सब कहुतों में है, जो मच्छ-अ्रवतार में मच्छस््-जाति थी वही सब मर्छों में ९) इसलिये सबकी पूजा करनी चाहिए ।-परतु 'पजते नहीं) इस- लिये जाति एज्य नहीं है किंतु शुण ही पूज्य है । जाति केवल व्यवहार की सिद्धि के लिये क़ारिपंत है ।. धर जाति का स्थल शरीर के साथ कोई संदंध भी, नहीं है। इसका सिद्ांपप्रकाश नामक ग्रंथ में खंडन भली भाँति किया गया है। उसी में-देख-लेना चाहिए। और भागवत के एकादश स्कंप: के, दूसरे श्रष्याय.पूं कहीं है कि-- न यस्य जन्मकर्मस्यां न वणोश्रमजातिथि । . स॒जतेजस्मिन्नहेगावो देहे वे स हर प्रिय ॥'.. जिस पुरुष के जन्म शर कम के साथ श्र वणांश्रम जाती के साथ इस स्थल देह में भ्रहंकार द्वारा भासकि नहीं है वही पुरुष हरि का प्रिय भक्क है; अ्रथात्र जिसे श्रपने शरीर 'में जाति श्रादि. का अभिमान है बह ठग है. । यदि स्थूल देह के ज़ाति ्रादिस थम




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