श्रीशुकदेवजी का जीवनचरित्र | Shree Sukhadevji Ka Jeevancharitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शुकदेवज्ञीका जीवनचरिंत्र। छु विचा्यमनसात्यथ .कृत्वामनसिनिश्चयम ॥ जगामचतपस्तलतुं मेरु पर्वतसब्निधो ॥ २९२ ॥ पेसा सनस एवचार करके 1नद्चय (कया व तप करने का सुमर पवतपर चलगय ॥ २ २'॥ “दी ड मनतसाचिन्तयामास किंदेवंसमपास्मह्दे | वरप्रदाननिपुणवाहिछताथ प्रदुतंथा ॥:२३,॥ सों अपने मंनें में क्यां विचार कंरेने लेंगे कि. में किस देवता का ध्यान करूं जो. जल्‍दी से वरेंदांनें देकर सेनोवाड्छित परी करे ॥ २३ 0 पे गा वेष्णुरुद्वंसरेंन्ट्रंवाब्रह्ा गवांदिवाकरस ॥ गणेशंकारत्तिकेयड्च पावकंबरुंसंतथा ॥ र४ ॥ अंचं विष्णु; रुदर, सुरेन्द्र,ंझा, सुये, गणेशा,का्तिकेंय, अस्नि और वरुण इनसबों में में किसकी, उपासना. करूं. ९४-1 एवंचिन्तयतेस्तस्थ .नारदोम॒निसंत्त॑मं ॥ -यरंच्छयासंमायातो वीणा पाणिःसमाहितः॥ २५४. ॥ उनके मन में ऐसा विचार करने पर मुनिश्रेष्ठ नारदजी हाथ: मैं वीणा लिये अपनी इच्छा से ही वहांपर प्रा्हुये ॥ २४॥ तंहष्ट्रापरमप्री तो व्यांसःसत्यवतीसुत्तः:॥ कृत्वा5प्येमासनंद्च्चां प्रपंच्छकुदाठंमुनिम्‌॥ २६ ॥ सत्यवतीकें पत्र व्यासजी नारदजी को देखिं अंतिंपरम प्रसन्न भये अध्यपाद्य दे आसन देकर सुनिं से. कुश पछतें भंये॥ २६॥ :. श्रत्वाइधकशनप्रश्न प्रपच्छमनिसत्तमः ॥ चिन्तातरो5सिंकस्माले -दंपायनवद्स्वमे २७ ॥ कुददल सुनकर प्रश्न नौरंदेमुंति एुजने लगे कि हैं ब्यासंजी !




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