हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास भाग 16 | Hindi Sahitya Ka Vrhat Etihas Vol-16
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36.27 MB
कुल पष्ठ :
1028
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
कृष्णदेव उपाध्याय - Krishndev upadhyay
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राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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समुदाय बोलियाँ या भाषाएँ
(१) मागघी समुदाय (९ ५ मैथिली, ( २) मगदी; (है )
भोजपुरी ।
(२) श्रवधी समुदाय (४) श्रवधी, (४) बघेली; (६ है
छुत्तीसगढ़ी |
(३) ब्रज समुदाय (७) बुंदेली, (८) तन; (६)
कनडनी ।
( ४ ) राजस्थानी समुदाय ( १० ) राजस्थानी, ( १९ ) मालवी ।
(५) कोरी. (१९) कौरवी ।
(६ ) पंजाबी समुदाय (१३) पंजाबी, (१४) डोगरी,
( १४, ) काँगड़ी ।
( ७ ) पद्दाढ़ी समुदाय ( १६ ) गढ़वाली, ( १७ ) कुँमाऊँनी,
(१८) नेपाली, (९६) कुछई;
(२० ) चंबियाली ।
इस प्रकार उपर्युक्त सात समुदायों में विमालित बीस क्षेत्रीय भाषाओं के
लोकसादित्य का वरणुन यहाँ पर किया गया है । इस विवरण को प्रस्तुत करते समय
वन का क्रम पू्व से पश्चिम की श्रोर रखा गया है, भ्रर्थात् सबसे पदले उस भाषा
को लिया गया है ज्ञो उपयुक्त सातो समुदायों में सबसे पू में बोली जानेवाली
( भाषा ) है । उसके पश्चात् उससे पश्चिम की भाषा ली गईं दै। इसी क्रम
के श्रनुखार मागधी समुदाय में सबसे पूरब की मैथिली भाषा का वणुन है; फिर
मगद्दी श्रौर बाद में भोनपुरी का । मागधी समुदाय के पश्चात् श्रवधी; ब्रल तथा
राजत्यानी समुदाय लिए, गए ई, जो क्रमानुसार पूर्व से पश्चिम की श्लोर पढ़ते हैं ।
प्रत्येक लोकसाहित्य का विवेचन मुख्यतः तीन दृष्टियों से किया गया है:
(१) श्रति संक्षेप में भाषा, ( २ ) मौखिक साहित्य; तथा ( ३ ) मुद्रित साहित्य ।
मौखिक सादित्य के श्रंतर्गंत पदले गद्य का वर्णन है, पश्चात् पद्य का । गद्य के
झंतर्गत लोककथाएँ, कददावतें, युद्दावरे श्रादि श्राते हूँं। पद्य के केत्र में लोकगीत,
लोकगाया ( पँचाड़ा ), लोरियाँ, शिशुगीत तथा खेल के गीत रखे गए ई। मुद्रित
सादित्य के श्रंतगंत उन कवियों तथा लेखकों का वर्णन है निनकी रचनाएँ प्रकाशित
हो चुकी हैं। भाषा के प्रहंग में विभिन्न माषाश्रों की बोलियों, उनका क्षेत्रविस्तार,
उस भाषा के बोलनेवालों की संख्या श्रादि दौ गई दें । प्रत्येक भाषा के चेत्रविस्तार
को निश्चित रूप से समझने के लिये प्रत्येक श्रध्याय के लोथ उस माषा का
मानचित्र भी दे दिया गया है। पाठकों की सुविधा के लिये पुस्तक के श्रंत में
दे
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