दानदर्पण भाग ३ | dhandarpan bhag ३
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.76 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(५ ३
उद्वाओं मईतों को मठाधीशों को पकेदासे ॥४॥
इन वातों से महाराज जी नाराज न होना |
दें दोष किसे खोटा हो अपना दी जी सोना ॥
तुम चाइते हो इस दिन्द की नया को इवोना 1
इम मूठ जो कहते हों तो इन्साफ करो ना ॥।
पुरुषा थे कभी आप के इस दिन्द के रक्षक ।
अब आप ही हैं सिफे दद्दी पेड़ों के भक्षक॥ ५ ॥
विद्वास दे जद आप कमर कस के देंगे ।
और हिन्दू की उन्नाति सेन खुद आप नंगे पा
इक दम में सकक देश के सब दुश्ख कईेगे ।
इम लोग भी निज धर्म से हगिज़ न देंगे ॥
तव हिन्द भी समंगा तुम्हे घम का आधीश 1
झ्ादरके सहित रकक््खेगा चरणों में सदा शशि ६ ||
देखो “* लक्ष्मी 7. मातिक पत्रिका वर्ष ५ सडक १ ए० इ-
मसली मिख्लारियों के भाग [ इक ] को नकृछी भिखारी तो लेत
कद
दी थे किन्तु अप लाभी घनाइय, जिनको राज़गारी-मिखाराी कहना
चाहिये, भी लैने छगे । इससे जान पड़ता है, कि अब भारत्तवर्ष मं
भनायों का कहीं मी पता न लगेगा न चलेगा ॥
म्र०--भाइ ! यह रोज़गार क्या राजगार किया करतद
८--महारान ! यह राजगारी दुनियां भर के सबही रोजगार
1कंचा करत हैं अथातू जमादारा, दुकावदास, ठकदारा, साइूकारा,
च्व्य्
निन्नक्मरी, रजिस्ट्री, मुनीमगीरी, सिपहमीरी, मुख्तारगीरी, ख़वात्त-
गीरी, कुछीर्यारी; महदन्तंगीरी, डिप्टीगौरी; तहसीउदारी, थानदारी,
चेचदारी, जमादारी, फोजदारी, दलालमीरी, वच्चगीरा; खुझ्ामदगीर
, चपरासगारों; डुगल्स़ारा, गवाहरारा, दलाल
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खारी; हरामज़ोरी, पण्डिताई; पुरोहिताई; किसानी, पहलवानी, डुर्न्ड
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