दानदर्पण भाग ३ | dhandarpan bhag ३

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dhandarpan bhag ३  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५ ३ उद्वाओं मईतों को मठाधीशों को पकेदासे ॥४॥ इन वातों से महाराज जी नाराज न होना | दें दोष किसे खोटा हो अपना दी जी सोना ॥ तुम चाइते हो इस दिन्द की नया को इवोना 1 इम मूठ जो कहते हों तो इन्साफ करो ना ॥। पुरुषा थे कभी आप के इस दिन्द के रक्षक । अब आप ही हैं सिफे दद्दी पेड़ों के भक्षक॥ ५ ॥ विद्वास दे जद आप कमर कस के देंगे । और हिन्दू की उन्नाति सेन खुद आप नंगे पा इक दम में सकक देश के सब दुश्ख कईेगे । इम लोग भी निज धर्म से हगिज़ न देंगे ॥ तव हिन्द भी समंगा तुम्हे घम का आधीश 1 झ्ादरके सहित रकक्‍्खेगा चरणों में सदा शशि ६ || देखो “* लक्ष्मी 7. मातिक पत्रिका वर्ष ५ सडक १ ए० इ- मसली मिख्लारियों के भाग [ इक ] को नकृछी भिखारी तो लेत कद दी थे किन्तु अप लाभी घनाइय, जिनको राज़गारी-मिखाराी कहना चाहिये, भी लैने छगे । इससे जान पड़ता है, कि अब भारत्तवर्ष मं भनायों का कहीं मी पता न लगेगा न चलेगा ॥ म्र०--भाइ ! यह रोज़गार क्या राजगार किया करतद ८--महारान ! यह राजगारी दुनियां भर के सबही रोजगार 1कंचा करत हैं अथातू जमादारा, दुकावदास, ठकदारा, साइूकारा, च्व्य् निन्नक्मरी, रजिस्ट्री, मुनीमगीरी, सिपहमीरी, मुख्तारगीरी, ख़वात्त- गीरी, कुछीर्यारी; महदन्तंगीरी, डिप्टीगौरी; तहसीउदारी, थानदारी, चेचदारी, जमादारी, फोजदारी, दलालमीरी, वच्चगीरा; खुझ्ामदगीर , चपरासगारों; डुगल्स़ारा, गवाहरारा, दलाल हु ५ द आग टु खारी; हरामज़ोरी, पण्डिताई; पुरोहिताई; किसानी, पहलवानी, डुर्न्ड ष्झ




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