पढ़ो,समझो और करो | Padho Samjho Aur Karo
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.42 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)माँका हृदय द्वौपदीके पॉचों पुत्रोंकी सोते समय हत्या कर देनेवाले गुरुपुत् अदवत्यामाकों अर्जुन पकड़कर द्ौपदीके सामने ले आये | द्ौपदीने अख़त्यामाकों देखा | उसका क्रोध अकस्मात् शान्त हो गया। मातृहदयमें दयाका सागर उमड़ पड़ा | द्ौपदीने अरजुनसे कहा-- आर्य | इन्हें छोड़ दो मैं इनके प्राण नहीं चाहती ये गुरुपुत्र हैं । मेरे पाचों पुत्रीकि मरनेसे जैसे मैं आज शोक-सागरमें हब रही हूँ यदि इन्हें मार दिया जायगा तो इनकी माता आपकी गुरुपल्ली भी मेरी ही तरह पुन्न-शोकें हब जायँगी । मेरे पुत्र तो लौठकर आते ही नहीं फिर बदला लेनेकी भावनासे मैं किसी दूसरी माताकों मेरी ही भाँति दुखी बना दूँ मेरा मन ऐसा नहीं चाहता | मैं इन्हें मा करती हूँ । आपकोग भी क्षमा कर दें | पाण्डबॉपर द्रौपदीकी क्षमाका बड़ा प्रमाव पड़ा | उन्होंने युरुपत्र भस््यामांकों छोड़ दिया | अस्त्यामा ठलित होकर वहोँते चले गये (१७)
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