पढ़ो,समझो और करो | Padho Samjho Aur Karo

Padho Samjho Aur Karo by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माँका हृदय द्वौपदीके पॉचों पुत्रोंकी सोते समय हत्या कर देनेवाले गुरुपुत् अदवत्यामाकों अर्जुन पकड़कर द्ौपदीके सामने ले आये | द्ौपदीने अख़त्यामाकों देखा | उसका क्रोध अकस्मात्‌ शान्त हो गया। मातृहदयमें दयाका सागर उमड़ पड़ा | द्ौपदीने अरजुनसे कहा-- आर्य | इन्हें छोड़ दो मैं इनके प्राण नहीं चाहती ये गुरुपुत्र हैं । मेरे पाचों पुत्रीकि मरनेसे जैसे मैं आज शोक-सागरमें हब रही हूँ यदि इन्हें मार दिया जायगा तो इनकी माता आपकी गुरुपल्ली भी मेरी ही तरह पुन्न-शोकें हब जायँगी । मेरे पुत्र तो लौठकर आते ही नहीं फिर बदला लेनेकी भावनासे मैं किसी दूसरी माताकों मेरी ही भाँति दुखी बना दूँ मेरा मन ऐसा नहीं चाहता | मैं इन्हें मा करती हूँ । आपकोग भी क्षमा कर दें | पाण्डबॉपर द्रौपदीकी क्षमाका बड़ा प्रमाव पड़ा | उन्होंने युरुपत्र भस््यामांकों छोड़ दिया | अस्त्यामा ठलित होकर वहोँते चले गये (१७)




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