तर्कइस्लाम अर्थात व्याख्यान | Tarkislam Arthat Vyakhyan

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Tarkislam Arthat Vyakhyan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(है ) '.ढकोसला बीच में लाकर परमात्मा'को इस दोप से ' चचाना चाहते हैं । परन्तु इससे उनका कुछ प्रयोजन सिख नहीं होता, जबंतक फुरान उपस्थित है कुरानी परमात्मा इन दोषों :के बूच-नीं सकता 1: व सी०: ५४ सू० नसाय आर उप (६) कुरान की यह शिक्षा है कि जो फुछ होता है पर- सात्मा की श्लाज्ञा से होता दे । तो फिर व्यमिचारी _मजुष्यों का व्यमिचार, मदिरापान.: डांका, चोरी, पाणघातं,..' हत्या, लूटमार, - इत्यादि सर्च कार्य परमात्मा 'की छाशा सें-ही डुए शेतान बिचारे को क्यो कर्लड्डिंत' किया 'जोता है । शोक, ! अन्ञानी पुरुषों ने परमात्मा को क्या तमाशा थनां दिया । ः ५'११ सू० यूनुस ५ ४६ ४४ ( १० 2 कुरान की यद्द शिक्षा है कि परमात्मा मजुप्यों के .उपदेश के लिये नवी भेजता है । परन्तु कुरान में स्थान २ पर देखोगे कि परमात्मा ही जान वूस कर मनुष्यों को कुमार में लेजा रहा है । छोर चहद स्वर्य ही इस 'बात का पच्तपाती माना गया हे; “दा हम शुमराह करते हूँ श्र जिसको, हम शुमराद करते हें उसको /कोई राह नहीं दिखा सकता” भला फिर पेराम्चरों के परिश्रम करने की क्या श्रावश्यकता श्रौर पुस्तकों के भरमार का क्या 'प्रयोजन' ? छौर शेताना को दोपी ठह्राने की क्यों पावश्यक्ता पड़ी । सी० ६ सू० मायदा शान ५ रे ( ११) कुरान की यद्द शिक्षा हे कि परमात्मा 'पचित्रता को पसन्द-करता है । परन्तु कुरान को पढ़ेंनेखे पता लगता है ' कि * खुदा ने नापाक दिल को पाक न करना चाहा ' बल्कि नापाकी को श्रौर भी झधिक कर दिया झौर: युमराही (सव- मार्ग विमुखता ! बढ़ादी” बच्चों कासा खेल है! एक ' तुच्छ




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