सन्त - वचन - संग्रह | Sant-vacnhan-sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.47 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्श्र
बाहर रखने की साधना ही जीवन यात्रा की साधना है ।
अपने अन्तर को बाह्य आक्रमण से बचाओ |
२६. घोरतर संहार के बीच कोलाहल होते हुए भी
अनुभव, करना होगा कि उस अन्तराल में कोई कोलाहल
पहुँचता ही नहीं, वह तो सदा शांत शुद्ध तथा निमेल हे
वहाँ किसी प्रकार भी बाहरी चांचन्य का प्रवेश नहीं हो
सकता । एक वार अन्तर के अन्तर की सेर कर आओ,
देख आओ कि वह निवातः निष्कम्प प्रदीप प्रज्वलित
है । अनुत्तज् समुद्र अपनी अतल स्पशे गम्भीरता लिये
हुए स्थित है, शोक का क्रन्दन वहां पहुँचता ही नहीं ।
३०. संसार हमारे बीच नहीं» किन्तु परमात्मा हमारे
झ्न्तर है इसीलिये संसार को अनेक चेष्टा करके भी हम
नहीं पा सकते, पर परमात्मा को तो प्राप्त किये हुए हम
वठे हैं ।
३१. मनुष्य का ईश्वर के साथ अत्यन्त विचित्र
दंग की योग, रक्षा का मतलब दिखाई देता है । जो जहां
है उसे ठीक वहीं रखते हुए और उसके साथ कैसे दी
ईश्वर को भी रखने की चेष्टा रहती है. उसमें कुछ भी
उलट पुलट करना नहीं चाहता । ईश्वर से कहता हे आप
घर में आइये । किन्तु सब चीज बचाते हुए कहीं मेरा
काँच का फूलदान न गिर जाय/ घर में जगह-जगदद जो
अनेक खिलौने सजाकर रख छोड़े हैं वे दक्कर खाकर टूट
User Reviews
No Reviews | Add Yours...