श्रीतुलसीदल | Shritulsidal

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Shritulsidal  by श्री रामनारायण मिश्र - Shri Ramnarayan Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीतुलसीदल श्डे पाया ज्ञाता है। कार्तिक मास में खियाँ जव तुलसी का पूजन नियमाजुकूल करती हैं; तब अनेक कामनाओं की पूर्ति सहज में प्राप्त करती हैं । अत्येक दिन्दू के घर मे तुलसी का चोरा; घर के प्रधान स्थान में रक्खवा जाता हैं । प्रत्येक मंगल-कार्य, पूजन और धार्मिक काम के 'झवसर पर इस पवित्र-पत्र का होना अनिवाये है । चुलसी की जड़; पत्र और बीज आओपध का काम देते हैं । ब्मौर इसके प्रयोग से अनेक राग दूर होते हैं । तुलसी के पत्रों में एक तरह का पीत-दरित तैल का सा पदार्थ पाया जाता है; जो कुछ समय तक रक्खा जाय तो दानेदार स्वरूप धारण करता हैं और उसे 'बासी कपूर” के नाम से सम्वोधन करते हैं । तुलसी की जड़ व्वर को नाश करती है । वीज शीतकर और स्निग्थ होता है । सूखा पत्र इसका अग्निववक और 'लंगूस' ( 1.प्०४5 ) से श्लेष्मा को छॉट कर वाहर गिरा देने वाला हू । चुलसी पत्र कफ को छॉटने चाला आऔओर सर्दी जुक़ाम को यथा- विधि शान्त करने की शक्ति रखता हू । तुलसी श्रत्येक हिन्दू घर की शोभा हैं, जीवन की रक्षा है । चिना छुलसी के घर अपवित्र सममा जाता हू । डाक्टरी अनुसन्धान सिद्ध करता है कि तुलसी पत्रों में मलेरिया और मच्छरों को दूर कर देने के गुण मौजूद हैं । अनुभव सिद्ध वात हैं; तुलसी-पत्र के रस से शरीर अलेपित किया जाय तो मच्छर उसके पास नहीं फटकते । इस विषय पर “सर जाजे वडडड” के लेख का उद्धरण विशेष रुचिकर होगा; चहद इस प्रकार है *--




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