प्राकृतिक चिकित्सा क्यों? | Prakritik Chikitsa kyon?

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निसगापिचार में रामनाम का स्थान श्र सबंध रसनेवाले क्षय जेसे रोगों में; जब कि मरीज की जीचन- शक्ति चहुत क्षीण हो गयी हो; केवछ प्राकृतिक उपचारों से दस कामयाच होगें, ऐसा नहीं कद सकते । भावार्थ यदद कि निसर्गो पचार की छुछ मर्वादाएं दो; तो वे हमारे ध्यान से आनी चाहिए और उनको स्वीकार करना चाहिए | ऐलोपेंथी आदि उपचार-पदतियो में जो मूलभूत दोप हैं; वह चतलाना हमारा फर्ज है। जसे वे हमारी मिट्टी; पानी; धूप आईि की हेंसी इढ़ाते हूं; चसे हम उनके जात्य की निन्दा न करें । डॉक्टर लोग सत्य-दवट्टि रखते हुए तटस्थ इष्टि से प्रारुतिक 'उपचार-दास््र का अध्ययन नहीं करते है और उसके सत्याश को अहण करके जनता को उसका लाभ नहीं पहेंचाते उनका बिचार-दोप हु; इसमें सन्देद नद्दी । 0९809 निसगोपचार में रामनाम का स्थान : ६: रामनानावलन्वी निसर्गापिचार गारधीजी को विशेष कल्पना टूं। अय तक पाथ्चात्य या प्रान्य निसर्गोपचारकों में किसीके ध्यान में यह विचार आया हो; ऐसा दिखाई नहीं पढ़ता । गाधीजी के *रामनाम” बालो फछिताच पर आचायं विसोवा भावे न एक अन्छा भाष्य ठिया ह। उस भाप्य में उस क्ताय में से कुछ उदरण दिये गये हैं । बे उद्धरण यहों दिये जा रहें हैं, जिससे यावौज़ों के इस विशेष थिचार का इसे दर्दान होंगा 1 १. दस चार फिडनी ओर लिवर दोनों घिगडे हैं, सेरी दृष्टि से यह रासनाम मे मेरे विइवास के कन्चेपन की चजहद से दे |




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