निघंटु भाषा | Nighntu Bhasha

Nighntu Bhasha by पंडित शक्रिधर शर्मा - Pt. Shakridhar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथमवर्ग । दर व पित्त को हृटाता है तथा खाने में गरम व लगाने में ठणढा व भेदी होकर खाँसी को विनाशता हे और रूखा तथा अँखों के लिये हिंतदायी होकर 'बालों को बढ़ाता हे और इसकी मींगी नशा को -लाती है ॥ अब त्रिफला के नास व गण कहते हैं । हड़ तीनमाग, आँवंला बारहमाग और 'बढेड़ा ढ माग इसको वैद्यों ने त्रिफला कहा हे और बरा, श्रेष्ठा तथा 'फलोत्तमा भी कहते हैं ओर यह पित्त, मीठा, ठणढा, कफ रूखा तथा कसेले को विंनाशंती है और कष्ठरोग, प्रमेह बवासीर' व कफपित्त को दूर करती व 'आ्आाँखों के लिये मफ़ीद होकर घावों पर अंकर॑ जमाती तथा दिल को कर्दचंत देकर काया को स्थापित करती है ॥ उव-भसिोवला के नाम व गण कहते हैं । भघात्री, बहुपत्री, अमता, आंमलकां और शिवा ये पाँच नाम भमिअआँवला के हैं-यंह वात को उपजाता है तथा-कड़वा! कसेला; मीठा - ओर ''ठरढा होकर प्यास खाँसी, रक्कपित्त, क्रिमि, ' पाण्ड श्र क्षतरोग को विनाशरती है ॥ दि ' अब पासीआवला के नाम व गण कहते हैं । प्राचीना: आमलकी, प्राची, नागर' औरं रक़कक ये पाँच:'नांमें पानीऑवला : के हैं--दसका -पंकाहुआ ' फंल ' प्िंततःतथा कफ को पेदा करता है और गरम व भारी होकर वाय को जीतता हैं ॥ अब वासा 'के' नाम व-गुण कहते हैं। _ : “न्मिरूषकट 'इसाववासा; उषा; ,सिंहमुखी,/'भिषक,




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