| Aushadhiki Vishkriya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Aushadhiki Vishkriya by

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रोग और उसका प्रतिकार 8 क्रम चलता रहता है। उस समय हमे इस वातका ज़रा भो मालम नदी होता कि दमारे शरीर-रुपी मदलके नीचे हमारी बिना जानकारीके वारूद जमा हो रही है। चहुत दिनो तक यदद इस प्रकार सुप्ता अव्यामें पढ़ा रहता है। हम सोचते रहते हैं कि हम पूर्ण स्वस्थ्य हैं। किन्वु एक दिन वारुद्खानेमे चिनगारीकी तरद हमारे दरीरके इस बिकारमे भयानक विष्फोट होता है । हम वहुधा लोगेकि बारेमें सुनते हैं कि, अमुक व्यक्ति खूब इट्टान्कट्टा था।. दारीरमे किसी भी विकारका कोई लक्षण प्रकट नहीं था, पर एक दिन अचानक वह लकवाका शिकार वन जानेसे चलने-फिरनेमे असमर्थ दो गया या हार्टफेल हो जानेसे काल द्वारा कवलित हो गया |. किन्लु भचानक कभी भी कोई रोग नहीं होता। यहाँ तक कि अचानक सर्दी भी नहीं होती । कभी ठडक लगनेके वाद लोम-कूपोंके वन्द हो जानेके कारण इनके द्वारा जो विप निकलता है; उसे प्रकृति दूसरे रास्तोसे बाहर निकाल देती है। इस प्रकार रोज सचित होनेवाले विषकों बाहर निकालते- निकालते अन्यान्य परिप्कारक यन्त्र जब कमजोर पढ़ जाते हैं और इस अतिरिक्त भारको ढोनेमें जब ये असमर्थ हो जाते हैं; तभी सर्दी लग जाती है। इसी प्रकार अचानक एक फोड़ा-ऊुसी भी नहीं हो सकती । जब रोगोंकि आकमणते दरीरके भीतर प्रतिरोध करनेकी शक्ति क्षीण हो जाती है, तभी एक छोटा घाव भी हो सकता है। जिसका हृदय सबल एवं स्वत्थ है; वह अचानक फेल नहीं हो सकता । शरीरके भीतर जमा होते रहनेवाले दूषित पदार्थके आक्रमणते शरीरका कोई यन्त्र-विहोष जब बहुत दिनोसे क्रमश खराब द्ोता जाता है, तभी एक दिन उसपर अतिम प्रहार हठात, विप्फोटकी भाँति आता है । इस कारण कि अमुक रोग दठोत, हुआ है. यद्द मान लेना नितान्त




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now