पिता की सीख | Pita Ki Sikh

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Pita Ki Sikh  by हनुमानप्रसाद गोयल - Hanumanprasad Goyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारी स्वास्थ्य-रक्षक सेना २३ की जी हि पहि हर फो फी लिपि निजी लिएिएर फीट उरि निजीएवििज़ी विज निज वि िजनिजिज़ि नितिन ादियि निज डी जग पुर ही जी जो जि हि खीर जी हरि जौ हि कूदकर छलाँग मार सकते हो । अब तुम्हीं सोचो कि यह ऐसा झारीर और इतना बल तुमने कहाँसे पाया । भ्रोजनसे ही न ? अस्तु हम क्या खायँँ और कैसे खायें इस विषयमें हमें सदैव सावधान रहना चाहिये । अवसर मिलनेपर किसी दिन इसकी बावत हम तुम्हें अधिक विस्तारसे समझायेंगे । अभी केवल इतना ही समझ लो कि हमारे खाने-पीनेकी चीजें सदा ऐसी होनी चाहिये जो बल और स्वास्थ्यको बढ़ानेवाली हों और आसानीसे पच सकें । केशव--ये चीजें कौन-सी हैं ? पिता--ताजे फल दूध मक्खन और मेवोंका स्थान--इस विचारसे सबसे ऊँचा है । इनके बाद रोटी दाल भात तरकारी साक और घीका नंबर आता है। पूड़ी मिठाई पकवान चाट और दही-बड़े आदिका नंबर तो बहुत नीचे है क्योंकि ये चीजें अधिक देरमें पचती हैं और शरीरकी अपेक्षा केवल जीभको ही ज्यादा सुख देनेवाली हैं। किंतु ध्यान रहे कि उत्तम भोजन भी जरूरतसे ज्यादा या बेवक्त खा लेनेसे विषके समान हो जाता है। साथ ही जो भोजन खूब चबाकर नहीं खाया जाता वह भी पेटके लिये बोझ बन जाता है | सड़ा गला बासी या देरका रखा हुआ भोजन भी हर्गिज न खाना चाहिये । ऐसा भोजन तामसी कहा गया है और झारीरके साथ-साथ हमारी बुद्धिको भी भ्रष्ट कर देता है । केशाव--मैं इन बातोंपर ध्यान रखैूँगा । पिता--हाँ और साथ ही हमें अपने रहन-सहनपर भी ध्यान रखना होगा | केशव--वह क्या ? पिता--वह है मुख्यतः सफाई और सदाचार । ये दोनों ही




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