मन्थरज्वर-चिकित्सा | Mantharjvar-chikitsa (typhoid)
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.42 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)। है.
श्यर्वाचीन अचलित ब्याधियों का घन प्रायः मिलता ही नहीं ।
हाँ; नवीन अन्थ स० म० कविराज श्रीगणनाथ सेन सरस्वती-
कृत सिद्धान्तनिदान दि में अवश्य कुछ विवेचन मिलता है;
सथापि हिन्दी में ऐसे अन्थों का अभाव ही है । मेरी इच्छा आज
से आद चप पूव आयुर्वेद के संदिग्ध रोगों पर छोटी-छोटी
पुस्तिकाएँ लिखने की थी; श्रौर “वचिसूचिका-विंवेचन” नामक
पुस्तक की रचना भी की थी; जो अनेक कारणवश अभी तंक॑
अम्रकाशित है । “'मन्थरज्वर की अनुभत चिकित्सा” नासक
पुस्तक स्वामी हरिशरणानन्दजी वेद्य महोदय से भी. लिखी
है; जिसका अधिकांश भाग केवल कीटाणुवाद के समर्थनसीद्र
में और अमासंगिक विपय को बढ़ाकर समाप्त हुआ है 4 घन्वन्तरि
पत्र के विशेषाक्क में अवश्य अनेक विद्वानों कीं चिकित्सा
मन्थरज्वर पर संक्षिप्त रूप से पढ़ने में आई । मैंने भी सच 3 ६ ४
में राकेश के सिद्धोपचार-पद्धति-नामक तिशेपाज् में ““सन्थरज्वर-
स्चिकित्सा “-शीर्पक खेख लिखा । प्रस्तुत पुस्तक में इसी लेख द्वार
उदुघत रोगी-रजिस्टर के उदाहरण संकलित किये हैं, जिसमें चार
नवीन रोगियों के उदाहरण और सम्मिलित हैं 1
आये-ऋषियों का तपोवन भारतवपं आरोग्य और आत्म
चल के लिए विश्वविख्यात था ! कहा भी है
““्रह्चयेंग तपसा देवा मुत्युमुपान्नत्”” ,
[ अंयववेंद 1.
घ्रह्मचर्य तथा तप से देवताझओं ने खत्यु को पराजित किया
था । किन्तु पराधीन भारत आज पाश्चाव्य कुजिम च्याधियों का
केन्द्र बन गया है । इसका श्रघान कारण है हमारी अअकमेंण्यता
व्ौर आयुर्वेदीय आरोग्यरक्षक दिनचर्या, रात्रिचर्या; ऋतुचर्यादि
नियमों की अवहेंलना करना 1 फलस्वरूप वैदेशिंक “चिकित्सा का
अ्रसार. हो-रहा है महापि आन्रेय का वचन है--
.....- यस्य देशस्य यो 'जन्तुस्तल त्तस्पोषध पईित्म 1, 1 5
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