धर्म-प्रश्नोत्तरी | Dharm Prashanottari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
0.91 MB
कुल पष्ठ :
50
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्म-प्रनोतरी । ष्टर
०--ऋषि श्रौर पितर किसको कहते हैं?
उ० -घ्रह्माएडके सभी काय्य॑ तीन भागोंमें विभक्त हैं। पक
, . क्ञॉनका विस्तार करना, दूसरा कर्मको चलाना तथा
कर्मका फल देना श्रौर तीसरा घह्मारडके -स्थूल शरीर-
की ब्यवस्था ठीक रखना । ऋषिलोम कानका विस्तार
क्ररते हैं, देवतागण कर्मको . चलाते, हैं क्और पिदगण
घ्रह्माएडके स्थूल शरीरकी व्यवस्था करते हैं।. श्रीप्म-
चर्षा, छाडि.ऋतुअका ठीक .ठीक होना, ठीक. समयपर
पानी चरसना,' खेतीका . होना, : देशमें. दुर्मिक्ष. न होना,
घोमारी न होकर देशका खास्थ्य टीक रखना--इत्यादि
कर्मका भार पितरोपर है। ऋषि, देवता, पितर सभी-
, देवता हैं । हमारे पूरे मरकर-जो पितूलो करे गये हैं,
पितर इससे श्रलग हैं। वे नैमित्तिक पितर-फहलाते हैं ।
प्र०--श्रवतार किसे कहते हैं ः
उ०--जव संसारमें कोई झरठुर या राक्षस ,पेदा होकर धर्मका
, नाश, श्रधर्मकी चुद्धि तथा साधुझ्ोंको कष्ट दिया करता है,
तव श्रीभगवान साकाररूपसे संसारम प्रकट होकर
, खस झसुर था राक्षसका नाश, करके 'घर्मरक्षा तथा
साधुझोंको रक्षा करते हैं । श्रीभगवानकां गसा ध्रकट
होना झवतार कहलाता है। सत्य, चेता, द्वाप्रर श्रादि
युगोंमें ऐसे श्रनेक वार प्रकट, हुए हैं. और, श्रागे भी
' होंगे । उतमेंसे २४ शवतार मुख्य हैं श्र उन २४ मंसे
्
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