सदाचार संध्या | Sadachar Sandhya
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.57 MB
कुल पष्ठ :
36
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१४)
ज्ञानते और यज्ञ का उपकार, कि पशुओं की मारने में थीडासा
दुख होता है परन्त॒ यज्ञ सें चराचर का अत्यन्त उपकार पीता
है, इनको नो जानते तो कभी यज्ञ विषय सें तक न करते, वेदों
का यथावत् पथ के नदों जानने से ऐसी वात तुम लोग कइते
क्षो कि ध्रूत भाण्ड और निशाचरों ने लिखा है, यद बात केवल
अपने अज्ञान और ' संप्रदायों के दुराग्रह से कदते हो और वेद
जो है सो सब के वास्त चितकारो है किसी सम्प्रदाय का ग्रंथ
वेद नहीं किन्त, केवल पदार्थ विद्या और सब मनुष्यों के चित के
वास्ते वेद पुस्तक है पन्नपात इसमें कुछ नदीं इन बातों को जा-
नते तो वेदों का त्याग और खंडन कभी न करते सो वेद विषय
में सव लिख दिया है वची देख लेना और यन्न सें-पशु को मा-
रने से खग.सें ज़ाता हि यह वात किसी मूर्ख के सुख से सन लौ
होगी ऐसी..वात वेद सें कदों नदों लिखो ॥ क
_. (स).स्वामी .जौ कूप के मैंडंक पीकर राजरहंस की .बरावरी
किया .चारँं.तो क्योंकर दो, उलटा उपहास्य का कारण. है, जेन
शास्त्रों के रुमान॑ तो -पदाथ विद्या का - वर्णन अन्य किसी धर्म
पुरूतक सें भी नं परन्तु पदांथ विद्या का जानकार -क्या विछा
' वा मूचादि. मलीन पदार्थों को जानता हा उनका भक्तण करने
' लगेगा। इम लिखते तो बह्त कुछ परन्तु खामी जौ. ने.नवौन
सत्याथ प्रकाश में यन्न करने के विधान में पशु बध,कौ आ्राज्ञा
'ंटा दौ, 'इसलिये केवल इतनादी लिखते, हैं कि.वेद जी. सर्व
शितकारी, हैं तो उनमें पण् वध् की आक्षा है सो जी वध: करने
सें पश का भला चोता है तो इस लाभ से . मनुष्य क्यों वच्चित्
'श्व्खा गया और लो भला नं, ोता तो निरापराधी के गले
' पर-छू गे फ्रेरना ' कितना बड़ा अन्याय : है... फ़िए कन्चियि . इस. से
अधिक पत्षपात् और किसको कृत: हैं, और हम. जैनी .लोग तो
. * मत्य सनातन :ईश्व रोकता वेदों का अथ यथाथ समभते आर मानते
' हैं परन्त, आपची की सुद्धिमें कुछ. नवोन चमत्कार मालम पता
: हिजी एक: गब्द को अनेक बार बदलने प्र. भी भ्रमदो में झूश
बह
भ्
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