भजन पुष्प वाटिका | Bhajan Pushp Vatika

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Bhajan Pushp Vatika by सेठ नवरत्नमल जी - Seth Navratna Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३... याद लक पाल यााकसयकााााामियूल धारा परफराकालयराकायालचदन्नमन्न लि कक देव स्तुति ः ११ उक्त तलक बिल्कुल नहीं; कीनी प्रभुजी ने वहां आतमा से,करम का; परद़ा दृटाने के लिये । वीर, ॥६॥। द्वाद्शांगी वाणी की; रचना प्रभ्ुजी ने करी भूले भटके जीवों को; रास्ता बताने के लिये । वीर, ॥७॥ है झनन्ते भव्य जीवों को; पहुँचाया मोक्ष में तेरा सुन्दर है वड़पता, मोक्ष पाने के लिये। वीर, ॥८ी॥ २३-ब्रह्मज्ञानी महावीर ॥ , [ तज़--वा में होते भाये भगवान भगत्त,के० ] कक इक तन्रद्दज्ञानी :आदासी, इस भारत में--टेक' क्षत्रिय बंशों लिया अवतवारा, सुर-नर, मुनिवर सेवक सारा घर घर मंगढ गायासी, इस भारत में -इक, 1१1] 1 , दर्दशा देख भारत की. प्यारे, दिंसा का जो था. परचारे देख दया दिललाई सी, इस भारत .म-इक. ॥र॥ ८ राज, पाट सब छोड़ा सारा, दिया दान अरबों का भारा ऋषि मुनि कदलाया सी; इस भारत मं-इक. ॥रै॥। चार वें तप घोर कमाये; वेसुमार प्रभु संकट पाये फेर ब्रह्म ज्ञान जो पायासी; इस भारत सें-इक, ॥४॥। अम्ृतमय उपदेश उम्दारा, जिसने सुना कट दिल में घारः तेरी शरन में, भाया सी, इस भारत में-इक. ॥ष्। तुम दो शरणाधारक ख्ामी, गये. मोक्ष हो ब्यन्तुर्यामी फिर आवागमन मिटायासी, इस भारत में इक, ॥ द॥ व अणााााणानाााााएएएएएएएएएएएएए77ल




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