भजन पुष्प वाटिका | Bhajan Pushp Vatika
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.77 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३... याद लक पाल यााकसयकााााामियूल धारा परफराकालयराकायालचदन्नमन्न लि
कक देव स्तुति ः ११
उक्त तलक बिल्कुल नहीं; कीनी प्रभुजी ने वहां
आतमा से,करम का; परद़ा दृटाने के लिये । वीर, ॥६॥।
द्वाद्शांगी वाणी की; रचना प्रभ्ुजी ने करी
भूले भटके जीवों को; रास्ता बताने के लिये । वीर, ॥७॥
है झनन्ते भव्य जीवों को; पहुँचाया मोक्ष में
तेरा सुन्दर है वड़पता, मोक्ष पाने के लिये। वीर, ॥८ी॥
२३-ब्रह्मज्ञानी महावीर ॥
, [ तज़--वा में होते भाये भगवान भगत्त,के० ] कक
इक तन्रद्दज्ञानी :आदासी, इस भारत में--टेक'
क्षत्रिय बंशों लिया अवतवारा, सुर-नर, मुनिवर सेवक सारा
घर घर मंगढ गायासी, इस भारत में -इक, 1१1]
1 , दर्दशा देख भारत की. प्यारे, दिंसा का जो था. परचारे
देख दया दिललाई सी, इस भारत .म-इक. ॥र॥
८ राज, पाट सब छोड़ा सारा, दिया दान अरबों का भारा
ऋषि मुनि कदलाया सी; इस भारत मं-इक. ॥रै॥।
चार वें तप घोर कमाये; वेसुमार प्रभु संकट पाये
फेर ब्रह्म ज्ञान जो पायासी; इस भारत सें-इक, ॥४॥।
अम्ृतमय उपदेश उम्दारा, जिसने सुना कट दिल में घारः
तेरी शरन में, भाया सी, इस भारत में-इक. ॥ष्।
तुम दो शरणाधारक ख्ामी, गये. मोक्ष हो ब्यन्तुर्यामी
फिर आवागमन मिटायासी, इस भारत में इक, ॥ द॥
व अणााााणानाााााएएएएएएएएएएएएए77ल
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