नव - रत्न | Nav-ratna

Nav-ratna by कामता प्रसाद जैन - Kamta Prasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न रे न७७०१ र मह के नव-रत/. € ी सन थक ० 55 न हि >लपरनपनरलट्ीसपकटर हि, नर नााटार डे द. दहन पे ७७७ ७७७ण० रदीनरनरररंतु रपट दि ७७9 ०: “ड (१) तीथकर अरिछ॒-नेशि । ाव्बफिला3 हा प्रचण्ड युद्ध था। कुरुक्षेत्रका कोना कोना वीरोंके- 11 मू || नववोषसे निनादित हो गया | वहँँको तिल-तिल- हा जमीनको वीरोंने अपने तनसे पाट दिया-झोणितकी नमः सरिता बह चली ! पर जारयंवीर बढ़ते ही गये ! एक ओर जरासिंधु और कौरवोंका दल था और दूपरी ओर हृरिवंशी यादद और उनके सद्दायक पाण्डवादिकी अक्षीदिणी बढ़ती चढीः जारदीथी। देखते देखते यादव-सेनामें कोलाइल मच गया- “चक्र ब्यूद ” “चक्र व्यूद ” की भावाजसे आकाश गूंन उठा !: श्रीरुष्ण, भरिष्टनेमि और छजुंनको परिस्थितिके समझनेें देर न ठगी-उनके परामशेसे राना वसुदेवने चक्रब्यूदको तदस- नइस क्ररनेके लिये गरुड़ व्यूहकी रचना कर डाली ! पचास लाख रण-पंडित यादवकुमार व्यूहके अग्रभागमें रक्खे और वह सब लोग अगाड़ी बढ़-बढ़ कर जरासिंधुकी सेनासे बाजी ढेने ठगे। फिर णुक दूफे योद्ाओंकी हुंकारोंसे दिशावें गूंज उठीं-रथसे रथ मिड़ थे. है




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