अनासक्ति योग | Anasakti Yog

anashakti yog  by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ त्यागशक्ति पैदा करनेके लिए ज्ञान चाहिए | एक तरहका ज्ञान तो वहुतेरे परिडत पाते हैं । वेदादि उन्हें कर होते हैं । परन्तु उनमें से अधिकांश भोगादिमें लीन रहते हैं। ज्ञानका अति्रिक शुष्क पांडित्यके रूपमें न हो जाय, इसलिए गीता- कारने ज्ञावके साथ मक्तिको मिलाकर उसे प्रथम स्थान दिया है । बिना मक्तिका ज्ञान नुकसान करता है । इसलिए कहा है, “भक्ति करो, तो ज्ञान मिल ही जायगा ।” पर भक्ति तो 'सिरकी बाज़ी' है, इसलिए गीताकारने भक्तके लक्षण स्थितप्रश्केसे बतलाये हैं । तात्पय यदद कि गीताकी भक्ति चाह्माचारिता नहीं है, अंघन्रद्धा नहीं है। गीतामें बताये उपचारोंका बाह्य चेष्टा या क्रियाके साथ कम-से-कम सम्बन्ध है । माला, तिलक और सर्व्यादि साधनोंका भले ही भक्त उपयोग करे; पर वे मक्तिके लक्षण नहीं




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