न्याय प्रदीप | Nyay Pradip
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.67 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अध्याय । _. , ७,
इसी तरह गायका लक्षण सींग, मजुष्यका लक्षण पंचैन्द्रियव आदि
भी अतिव्याप्ति लक्षणाभासके उदाहरण समझना चाहिये ।
अब्याप्त चक्षणाभास तो लक्ष्यके भीतर ही रहता है. और अति
व्याप्त ठक्षणाभास भीतर और बाहर-दोनों जगह-रहता है |
लक्षणरूपमें- कहेगये धमेका, लक्ष्यमें बिलकुठ न रहना
' असम्भव ' दोष है। जैसे गधेका लक्षण सींग । सींग किसी
भी गंघेमे नहीं होता, इसलिये यहां असम्भव दोष है और यह
दोषवाला क्षण, असम्भवि लक्षणाभास कहलाता है । इसीतरह
जीवका लक्षण अचेतनत्व और पुद्टल ( पृथ्वी आदि ) का कक्षण
चेतनत्व आदि भी असर्ग्भवि लक्षणाभास है । .
कुछ छक्षणाभास ऐसे. भी होते हैं, जिनमें अव्याप्ति और अति
व्याप्ति-दोनों-ही दोष पाये जाते हैं । जैसे-विद्वान उसे कहते हैं
जो अंग्रेजी अथवा संस्कृत जानता हो | परन्तु बहुतसे विद्वान ऐसे हैं जो
अंग्रेजी और संस्कृत दोनों नहीं जानते फिर भी वे विद्वान् हैं; इसलिये
अव्याप्ति दोष है। तथा बहुतसे मूखे भी संगति आदिसे या मातृभाषा:
होनेसे अंग्रेजी या संस्कृत बोलने छगते हैं लेकिन वे विद्वान
नहीं होते, इसलिये यहां अतिव्याप्ति दोष भी है । प्राचीन ग्रन्थ-
कारेंनि ऐसे मिश्रल्क्षणाभासोका अलग उछेख नहीं किया है, |
क्योंकि लक्षणाभासके द्वारा ठक्षणके दोष ही कहे जाते हैं | हेत्वा-
भासमें भी एक जगह अनेक दोष होते हैं, परन्तु मिश्रहेत्वा-
_मासोंका नाम अछ्ग नहीं रक्खाजाता; क्योंकि इससे व्यमका'
विस्तार होता है । यही बात लक्षणाभासके विषयमें भी समझना
चाहिये । इसीलिये लक्षणाभासके तीन ही भेद किये गये हैं ।
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