औरंगजेब नामा | Aurangzeb Nama

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Aurangzeb Nama by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सस्तावना. (१११ कया । उसने सिंधु पार करके झेढम तक घावा मारा । उस समय हिंन्दुस्तानका साम्नाव्प मुकुट नंदबंधी राजा पहानन्दकें शीश पर छुशोसित था । उसके पास साठ ढाखके उगभग सब सेना थी । कया .जाने उसीके भयसे . या अपनी सेनाके मनदार होजानेसे सिकन्दर शेलगते आगे न बढ़ा,पर स्रदेशाकों ढोठते वक्त पंजाइप सीर यथाववसर सिन्खुके किनारे किनारे कई एक प्रत्तिनिषि झास- कोको दियत करता गया । परंतु घंर पहुंचते पहुंचते सिकन्दरका दहान्त हाजानके पश्चात्‌ यूनानिये|का' दाना पानी थी तानसे उठ गया | इपर नंदवंदाकि बाद गुत्दंधाका अधि दा । इूप वंदाने सपना सच्छा प्रभु चढ़ाया, सारे हिन्दुस्तानको मुद्दीमं सदास मप्य एडियातक अपना सातंक जमाया, परन्तु होनदार वा ढा घर्दा होगा, गतमंदा के सादिराजा चन्द्रतुततका पोता अशोक इस देश का सी महारान वाहाजात। है । उसने दिन्दूचमे को छोड़कर बीद धर्म को अंगी- कार फिया । समीर अपने राज्यगर में वीोद्ध घमका डंका पीट दिया. परिणाम यह हुआ 'छे हिन्द्तानी ढोग जो सच तक केवल राजनितिक विश्व के शिकार थे. अद क प्रतिद्रदता के फन्दे में भी जकड़े गये । करें देश तेरे दान ! न वह चन्नावर्ती महाराज अशोक रहे न वह वीद्ध धर्स रहा | सन्‌ ईस्वी की छठ्वीं दाताव्दी के उगमग इधर श्री स्वामी दोकराचाय्यंजीन चेदमत र करनेका वीड़ा उठाकर वीद्धव्म को उन्मूछ करना आरम्भ किया, उधर भरविस्तान में आखिरी पेगम्वर महम्मद साहत्र ने दीन इस्लाम का झंडा उठां-- 2 स़ जञ के प्र हल रहें वह भी न रहे, पर सन्‌ इंस्वी की सातवीं झाताब्दी के उत्तरा्ट्र में काचुद के मेदान में दोनों के चेढों का सुकाबिठा हुआ, उस समय गजनी में याद- वचंशी राजा गज राज्य करता था, उस पर खुरासान॑ के हाकिम फर्रीद्शाह ने चारें उाख सदारों के साथ आक्रमण फिया,एक डाई में राजपू्तों की जे रही पर दूसरी में गज़ने हारकर मुस्ठमानी धर्म स्वीकार करडिया । ीजिये उसी समय से मुसरमानी मजदब के दिये हिन्दुस्तान का दरवाजा ख़ुढगया । सन्‌ ७११ इस्वी में खरडीफा .' हारूरशीद के बेटे मामूस्तीद ने कर्मीर और सिन्थ पर दीन इस्लाम की दुददाई पे




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