भारत भ्रमण पांचवा खण्ड | Bharat Bhrman Panchva Khand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हुपीक श, १८९६ । ७ चुताता--दरिद्वार तक रेल है । दरिद्वार से केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा जारंभ दोती है । इुछ लोग नजीवावाद सें भी जाते हैं। हरिद्वार से हुपीकेश तक १९ मीॉंछ चेछगाड़ी और पक्के की सड़क है। हुपीकेश से ४०३ मोछ काठगोदाम के पास के रानीवाग तक हिंमारूय पहाड़ की चढ़ाई उत्तराई है सवारी के अंपान या कंठी और असवाव लेजाने के लिये कंडीं या कुलो का वंदोवस्त हरिंट्रार से करना चाहियें। जो दरिद्वार में वन्दोवस्त नहीं करता उसको हृपोकेश में भी उपरोंक्तचीजें मिछती हैं । यात्लियों को अढड़ू- रखा, कंबल, छोई या दोलाई, छतरो, जूता, पायजामा, चढ़ाई उतराई के स- मय सहारे के लिये लाठी या छड़ी, पूजा चढ़ाने के लिये मेवों की पुड़िया और चने की दाल, रोग से बचने के लिये पाचक, झुनेन आदि औपधि अपने साथ लेजाना चाहिए । ये सब सामान हरिद्वार में तैयार रहते हैं । खाने के लिये कोई जिन्श साथ छेजाने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि रास्ते की संपूर्ण चह्टियों पर सब सामान मिलते हैं मापूठी चर्तन भी दुकानदार देते हैं । हरिद्वार से केदारनाथ ओर बद्रीनाथ होकर रेलवे का स्टेशन फाठगो- दाम ४१७ मील पर मिलता है । लक्ष्मण घूला से मील चौरो तक गढ़वाछ जिला और मींल चौरी से आगे कमाऊउं जी छा हैं । गढ़वाल जिले का डिपिटी कमिश्र श्रीनगर से ८ मील पौंढडी और कमाऊं जले का अरमोड़े में रहते है । पदाड़ में जंगल और माल के दो मदकर्में अढग अलग हैं। जंगल का मवंध और फौजदारी का विचार सुद डिपटीकमिश्र करते हैं और माल के वंदो- चस्त के चास्ते पटवारी लोग पुझरर हैं। यही लोग मालगुजारी तहसील और घाकयातों की रिपोर्टे भी करते हैं । वड़ी बड़ी बस्तियों में पुलिस की चौंकी है । पद्दाड़ी मनुष्य--पहाड़ी मनुष्यों में क्षत्री और घ्राह्मण दी अधिक हैं । इ- नका निर्वाद एक पेशे से नहों दो सकता, कोरण इनमें से वहुत छोग कली के काम भो करते हैं । इस देश में छोद्ार-वढ़ई, कुम्दार, तेठी, दरजीं, और नट वूदूत नोच समझें जाते हें ।. लोदार बद्रीनाथ और केदारनाथ के कंकण, अंगूठी और चदरीनाथ कापट और वढद्ई--कठौते, कठारी, कलसी और प्याले घनाकर यात्रियों के दाथ बेचते हैं । नट लोग यालियों के आगे नटी को




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