स्वाराज्य सिद्धि | Swarajya Siddhi

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मंगलहरि मुनि - Mangal Hari Muni

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श्री परमहंस स्वामी - Shri Paramhans Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकरण १ श्लो० ४ [७ से, जो न्रह्म देश चस्तु काल कृत भेद से रहित है अथवा भेद प्रपंच विनाश से रहित है ( यत जाग्रत्स्पन प्रसुप्तिषु ) ताटस्थ लक्षण और स्वरूप लक्षण से बताया जो तत्पदा्थ न्रह्म है सो ब्रह्म दी ( तत्सष्टा ) इत्यादि श्रुति प्रमाण से प्रत्यगात्म रूप हुछ्मा है इस तात्पये को सन में लेकर अन्वय व्यतिरेक युक्ति से त्वंपदाथ के संशोधन के बोधन का प्रकार सूचन किया जाता है, ( यत्त्‌ ) वह प्रत्यगात्म न्नह्म जासत स्वप्न सुपुप्ति रूप परस्पर व्यभिचारी अव- स्थाओं में ( विभाति ) झन्नुगत रूप से भान होता है अर्थात्‌ ापस में जाप्रदू आदिक 'अवस्था्मो के व्यमिचारी होने पर भी सो 'आत्मा व्यमिचार से रहित है, ( एकम ) जाअत्‌ आदि अब- स्थाओं के भेद होने पर भी जो प्रत्यगात्म घ्रह् भेद चाला नहीं है, ( विशोकम्‌ू ) शोक से रहित दे अर्थात्‌ 'झानन्दरवरूप है, ( परम्‌ ) तथा जाश्रत्‌ू झादिक तीनो अवस्थाओं के सम्बन्ध से रहित है ॥51। अब औाचाये वेदांत के अधिकारी को कहते हुए कतेव्य भूत अंथ रचने की प्रतिज्ञा करते हैं । शिखरियणी छन्द । छाधीतेज्या दानव्रत जप समाधान नियमेविंशुद्ध- स्वान्तानां जगदिदमसारं विस्शताम । झराग- दषाशामभय चरितानां हितमिद मुमुचणां हृदय किमपि निगदामः सुमघुरम्‌.।४॥ वेदाध्यन, यज्ञ, दान, तप. उपासना, इन्द्रियानिग्रह आदि से शुद्ध अन्तःकरण वाले; यदद जगत असार हे ऐसे




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