स्वाराज्य सिद्धि | Swarajya Siddhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.22 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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मंगलहरि मुनि - Mangal Hari Muni
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श्री परमहंस स्वामी - Shri Paramhans Swami
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकरण १ श्लो० ४ [७
से, जो न्रह्म देश चस्तु काल कृत भेद से रहित है अथवा भेद प्रपंच
विनाश से रहित है ( यत जाग्रत्स्पन प्रसुप्तिषु ) ताटस्थ लक्षण
और स्वरूप लक्षण से बताया जो तत्पदा्थ न्रह्म है सो ब्रह्म दी
( तत्सष्टा ) इत्यादि श्रुति प्रमाण से प्रत्यगात्म रूप हुछ्मा है इस
तात्पये को सन में लेकर अन्वय व्यतिरेक युक्ति से त्वंपदाथ के
संशोधन के बोधन का प्रकार सूचन किया जाता है, ( यत्त् ) वह
प्रत्यगात्म न्नह्म जासत स्वप्न सुपुप्ति रूप परस्पर व्यभिचारी अव-
स्थाओं में ( विभाति ) झन्नुगत रूप से भान होता है अर्थात्
ापस में जाप्रदू आदिक 'अवस्था्मो के व्यमिचारी होने पर भी
सो 'आत्मा व्यमिचार से रहित है, ( एकम ) जाअत् आदि अब-
स्थाओं के भेद होने पर भी जो प्रत्यगात्म घ्रह् भेद चाला नहीं
है, ( विशोकम्ू ) शोक से रहित दे अर्थात् 'झानन्दरवरूप है,
( परम् ) तथा जाश्रत्ू झादिक तीनो अवस्थाओं के सम्बन्ध से
रहित है ॥51।
अब औाचाये वेदांत के अधिकारी को कहते हुए कतेव्य भूत
अंथ रचने की प्रतिज्ञा करते हैं ।
शिखरियणी छन्द ।
छाधीतेज्या दानव्रत जप समाधान नियमेविंशुद्ध-
स्वान्तानां जगदिदमसारं विस्शताम । झराग-
दषाशामभय चरितानां हितमिद मुमुचणां
हृदय किमपि निगदामः सुमघुरम्.।४॥
वेदाध्यन, यज्ञ, दान, तप. उपासना, इन्द्रियानिग्रह
आदि से शुद्ध अन्तःकरण वाले; यदद जगत असार हे ऐसे
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