आज़ाद कथा | Azaad Katha

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Azaad Katha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आाजाद-कथा रे एक सफशिकन बाकी रह गया है | घुजर्गों की निश्यानी है । बस, यदद समझिए: कि मुहम्मद अली शाह के वक़्त में खरीदा गया था । अब कोई सौ वर्ष का होगा; दो कम या 'दो ऊपर, मगर बुढाये में मी वद्द दमखम है कि मुर्ग को छपक कर लात दे तो वद्द भी वें बोल जाय । पारसाछ की दिछगी सुनिए, नवाब साइब के मामें तथ्वारीक्र छाये । उनमें मी रियासत की बू. है। कनकौवा तो ऐसा लड़ते दूँ कि मियों विछायत उनके आगे पानी भरें। दो-दो तोले अफीम पी चायें और वद्दी खमदम ! बटेरगजी का मी परे सिरे का शौक है । उनका डफरपैकर तो बछा का बटेर है, बटेर क्या है; शोर है । मेरे सुँह से निकछ गया कि हुजूर को तो बटेरों का बहुत शौक है, करोड़ो दी बटेर देख डाछे होंगे, मगर सफ शिकन सा बटेर तो हुजूर ने भी न देखा होगा । बोले, इशकी हकीकत क्यों है, लफर- पैकर को देखो तो आंखें खुछ जायें, बढ़कर एक लात दे, तो सफ़शिकन क्या, आपको नोकदम पाठी बाइर कर दे । दौसला हो, तो मेंगवाऊँ । “दूसरे दिन पाछी हुई । हजारों आदमी झा पहुँचे । श्र मर मे घूम थी कि आज बड़े मार्के का जोड़ है । जफ़रपैकर इस ठाठ से आया कि जमीन हिल गयी, और मेरा तो कलेजा ददछते छगा । मगर शफशिकन ने उस दिन आत्ररू रख छी, जमी तो नवाब साइब इसको बच्चों से भी ज्यादा प्यार करते हैं। पहले इसको दाना, खिलवा केते हैं, फिर कदीं आप खाते हैं। एक दिन खुदा जाने; बिछ्ली देखी या क्या हुआ कि अपने आप फड़कने छया । नवात्र समझे कि बूँदा दो गया, फिर तो ऐसे धारोघार रोये कि घर मर में छु्राम मच गया । मैंने नवाब साहब को कमी रोते नहीं देखा । मुद्दरंम की मजलिसों में एक आँसू नददीं निकलता । जब बड़े नवाब साइन सिधारे तो आँसू की एक बूँद न गिरी । यह बेर दी ऐसा अनमोल है । सच तो यद्द है कि उसने उस दिन नवाब की सात पीढ़ियों पर एहसान किया । वाद, जो कही घट जाता, तो मैं तो जेगछ की रा लेता | मियां, जग में आबरू दी आवरू तो है, और दया । खैर साइब, जैसे दी दोनों चक्की खा चुके, लफरपैकर बिलली की तरह सफशिकन की तरफ चल । आते दी दबोच बैठा, चोटी को वॉच से पकड़ कर ऐसा झपेठा कि दूसरा होता तो एक रगडे में फुर॑ से भाग निकछता । नवाज का चेहरा फक हो गया, सुँ पर दृवाइयाँ छूट्ने लगीं कि इतने में सफशिकन छौट ही तो पड़ा । वा मेरे शोर ! खूब फिरा !! पाछी भर में आवाज गूँजने लगी कि बद्द मारा हे ! एक अत ऐशसी नमायी कि जफरपैकर ने मुँद फेर लिया । मुँह का फेरना था कि सफकिकन ने उचक कर एक शैंझ्ौटी बतलायी। वाह पढ्टे, और लगा | आखिर जफरपैकर नोकदम पाली बाइर ज्यगा । चारों तरफ टोपियों उछल गयी । आज यह बटेर अपना सानी नहीं रखता ! मियाँ आजाद, अब आप अटेरखाना अपने हाथ में ठीजिए, ।” ज नवात्--वछ्लाइ, यही मैं भी कदनेवाठा था । झम्मन--काम जरा मुदिकिछ है




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