नागरी प्रचारिणी पत्रिका भाग - २ | Nagari Pracharni Patrika Bhag-ii
श्रेणी : पत्रिका / Magazine
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.34 MB
कुल पष्ठ :
582
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्ध नागरीप्रचारिणी पतश्चिका ।
मददारा्ट्रो प्राकृत में ही होती थी । मीराबाई के पद पुरानी दिंदी
फद्टे जाय या शुजराती या मारवाड़ो ? डिगल कविता गुजरासी है था
मारवाड़ी या दिंदी ? फ्चि की प्रादेशिक्रता श्राने पर भी साधारण
भाषा शभाया? दी थी । जैसे अपचंश में कहीं कहीं संस्कत का पु
ल्मै वैसे घुलसीदासजी रामायण को पृरवी भाषा में लिसते लिखते
संस्कत में चले जाते हैं *। यदि छापासाना, प्रांतीय श्रक्षिमान, मुसल-
मानों का फारसी झक्षरों का आप्रहड, श्ार नया प्रतिक उद्योधन न
होता तो हिंदी 'प्रनायास ही देश भाषा धनी जा ग्दी थी । श्रधिक
छपने छापने, लिसने श्रौर भगड़ों ने भी इस गति को रोका ।
श्राजफल लोग प्रथ्वीराजरासे की भाएपा फो दिदी का प्राचीनतम
रूप मानते हैं । उसका विचार दम पश्रंश के श्रवतरणों के विचार
के पीछे फरेंगे किंतु इतन्ञा कद्दे देते हैं कि यदि इन कविताओं को
पुरानी चिंदी नहीं कद्दा जाय तो रासे की भाषा फो राजस्थानी या
'पोवाड़ी-रुजराती-मारवाड़ी-चारणी-भाठी” कहना 'घाहिए, हिंदी
नददीं । श्रजमापा भी हिदी नदी और हुलसीदासजी फी मघुर उक्तियां
भी दिदी सहीं ।
यह पुरानी कविता 'विसरी हुई मिलती है । कोई सुक्तक संगार
रस की कविता, कोई बीरता की प्रशंसा, कोई ऐतिदासिक बात,
कोई नीति का उपदेश, कोई लोकाक्ति और वह भी व्याकरण के
'उदाइरणों में या कथाप्रसंग में उद्घृत । मालूम होता है कि इस भाषा
का सादहिस जड़ा था । उसमें मददाभारत श्र रामायण की पूरी,
या उनकी श्ाश्रय पर बनी हुई छाटी छोटी, कथाएं थीं । घर शोर
मुंज नाम के कवियों का पता चलत। है ! जेसे प्राझत के पुराने रूप
सी न णार की; 'बरकीत्टी सु्क गाथा सें (सलवाइदल की सपशती)
या जैन धर्ममंथों में हैं, बैसे पुरानी हिदी के नमूने भी या तो श'गार
या वीर रस के अधवा कहानियों के चुटकुले हैं या जैन धार्मिक
इ लैसे,--इविडि' अगम जिमि ब्रद्सुय अइमममक्िनजनेषु ।
इन जीति रियिदलमेध्यगत पर्यासि राममनामय ॥! इत्यादि
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