श्री धर्म्म कल्पद्रुम खंड - ४ | Sri Dharma Kalpadruma Vol-iv

Book Image : श्री धर्म्म कल्पद्रुम खंड - ४  - Sri Dharma Kalpadruma Vol-iv

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'हुश३९: थीचर्मकरपटुम 1 , +,. पदकर्म द्वारा शरीर शोधन, झासनके हारा इढ़ता, घुद्दाके द्वारा स्थिं रता, प्रत्यादारसे घोरता, माणायाम-साधन ,द्वारा लावव, भ्यान द्वारा सक्ति का प्रत्यक्ष झौर समाधि द्वारा निरलिप्तता घ मुक्तिल्ाम अवश्य होता है! हब सब मानसिक घ आध्यात्मिक ला्भोके सिवाय दटयोगके प्रत्येक झह्ह वर उपाह साधन द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य चिपयक सी बिशेष लाम होता है जो योगिराड झीशुददेवसे जानने योग्य है । झव इन झज्नॉका वर्णन संक्तेपले किया जाता ह्े। दठयोगका प्रथम झड्म पदूकर्म साधन दै जिसके लिये योगशाखर्म लिखा है” घौतिचत्तिस्तथा नेतिलौलिकी श्रारकं तया। कपालमातिश्तानि पदकमीणि समाचरेत्‌ ॥ चौठि, चस्ति, नेति, लौलिकी, श्रादटक व कपालमाति पदकर्मके ये है साधन हैं । घौतिके विपयमें कद है-- उन्तर्घोतिद॑न्तपीतिहेदौ तिमुलचों घनम । : चौर्ति 'चतुर्विधां कूत्वा घट कुवन्त निर्मलम्‌ ॥ झम्त्घति, दन्तघौति, इट्घौति' और मूलशोधन इन चार चौतिके द्वारा शरीरकों निर्मल करें। पुनः अन्तर्धोति भी. चार प्रकार की है, यथा- दे चातसारं चारिसारं चहिसारं चहिष्कृतम्‌ | घरटनिरमलतारधाय अन्तर्घधोतिश्वतुर्विधा ॥ धघातसार, चारिसार, चन्दिसार थ घद्दिप्कतसार ये चार प्रकारकी झर्तः ीति होती हैं जिनसे शरीर निर्मल दोता है । वातसारका लक्तण यथा-- द८- काक'चन्चुवदास्येन पिवेदू घायुं दाने: धानेः । ०... प्याठयेदुद्रं 'पश्दादू चत्मिसा रेचयेच्छने। 0 दोठौको काकचब्चुकी तरदद बनाकर धीरे धीरे घायुपान करके उस घायुको उद्रष्हे सीतर 'ालित करें और पश्चात्‌ सुखके द्वाय शनेः शरैः उस घायुका रेचन करें। यदद फ़िया झग्नियदंक थ सर्वेरीप्यकारक है! बारिसारका लन्षण-- 7. आाकप्ठ पूरयेद्वारि चख्रेण च पिवेच्छनै: । -.. 'वालयेदू गुद्सागेंग प्योद्राद्रेंचयेद्घः ॥। कल च + गे




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