मिश्रबंधु विनोद भाग - २ | Mishrabandhu Vinod Bhag-ii

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Mishrabandhu Vinod Bhag-ii by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्श्द द्िधपरपुविगाइ 1 सैर 1६५४1 माना छवि ताकी उदयत सविता की सेनापति बधि ताकी कपिताईं दिउसति है ॥ तुकनि सदित से फैठ का घरत संूपे दूरि का घलत जे दूं घीरशिय ज्यारी यो 1 रागत बिधियि पच्छ साइत ६ गन संग दे धवन मिदत मूदि कीरति उज्यारी के ॥ साई सीस घुनै जाके उर मैं घुमत नोके चेगि घिधि जात मन मादि नरनारी के । सेनापति कवत्रि के कथित्त घिठसत अति मेरे जान घान दिं अ्न्यूक यापघारी के ॥ बानी से सदित सुबरन मुँ द रहे जद घरत घदुत भांति अरथ समाज वेग 1 संपया कि ठीजै अरदधकार हैं अधिक या मैं शी मति ऊपर सरस ऐसे साज फेा ॥ सुना मद्दाजन थारी दाति वारि घरन की ताते सेनापति कद तजि उर ठाज का । छीजिये चचाइ यों चुराये नादिं काई सांपी दिस कीसी थाती मैं कवित्तन के ब्याज के ॥ सेनापति बरनी हैं वरखा सरद रितु मुद्रन को गम सुगा परबीन का । दिचसिंदजी निन्न चा्क्यें द्वारा सेनापति जी की घ्रशंस करते हैं. काय में इनकी भला दम वर्दों तक करें अपने समय १ समाज थे |




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