व्याकरण महाभाष्यम | Vyakaran Mahabhashyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.74 MB
कुल पष्ठ :
253
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विश्वनाथ विष्णु आपटे - Vishvnath Vishnu Aapate
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मे, 3 पा. १ भाडिक १ 1 व्याकरण मदाभाप्यंस श्ण
जानते । सायुज्यानि जानते । छ। य एप दुर्गो मार्ग एफसम्यो वाख्विपिय: । के
पुनस्ते । वैयाकरणा: । कुतत एतत्। भंद्रेपां लश्मीनिंहिताथि याचि। एपां वाचि
भद्ठा लश्मीनिंडिता भवति । लरमीलैक्षणाद्वासनात्परिदृढा भवति ॥) सक्तुमिव ॥।
सारस्वतीसू । याशिका: पठन्ति । आडितामिरपशब्दे प्रसुज्य प्रायश्विचीयां
सारस्वतीमिटिं निर्ममद्िति । मरायत्विचीया सा शूमेत्य*येये ब्याकरणम् ॥ सारस्वतीस 0)
दूशम्यां पुत्रस्य । याशिका: पठन्ति । दुशम्युत्तरकालं पुत्रस्थ जातस्य
नाम विदृध्याद्धोपवदायन्तरन्तस्थमवृद्धं ्रिपुरुपानुकमनस्पितिष्टित तद्धि प्रतिष्ठिततमे
गवति यक्षरं चतुरक्षरं वा नाम कृत कुर्मात तद्धितमितति । ने चानरेण व्याकरण
कृतस्तदिंता वा शक््या विज्ञातुमू ॥ दशम्यां पुत्रस्य ॥
हैं। इस स्थान पर अर्थात् कहाँ ? यह जो डुगेम ( मोक्ष) मार्ग है, कि जी केवल
शानसे ही प्राप्य हे और जो वेदवाणीका विपय हे, उस स्थानपर ! ये ल्लेही कौन हैं
वैयाकरणं 1 हृदू सह कैसे संपादन करते है! उत्तल--' भद्रेपां उश्मीरिहिताधिवाचि ?
अर्थात उनकी वाणीमें कल्याणकारक शमी वास करती है इससे। ठक्षण किंचा
भासन अर्थात् प्रकाशित होना इस शुणके कारण लक्ष्मी अज्ञान दूर करनेमें समर्थ
होती है, इसछिए उसे लक्ष्मी कहते है ।
अब “ सारस्वतीय० ” बाक्यकों लें । याशिक लोग कहते ह--“ जो गृद्मामिका
पालन करता है, वह यदि अपशब्दका प्रयोग करे तो बह प्रायाशिसके हेतु * सारस्वती
इष्ि' * करे। ” हमें प्रायश्विन की आवश्यकता न हो इसलिये व्याकरणका अध्ययन
करना चाहिये )
अब * दुशम्याँ पुमस्य * वाक्यकों लें । यासिक लोग कहते हैं,--“ दसवें
दिनंके बाद नवजात पुनका नाम रखा जाय । नामका आरंभ घोपतर्तु ब्यंजनसे हो;
नामंके बीच अन्तःस्थ व्यंजन हो; वह बृद्ध न हो ( अर्थात् उसका आरंभ जा, ऐ,
आओ इन वाद्धिसिंशक' स्वरॉसे न हो); यह तीन पुरुषोंके नामोमेंस हो; और वह
* अनरि” हो अर्थात् मानवका न हो ( अर्थाद् देव-आदिका हो ) अयवा शब्ुमें अतिथित
सन हो। ऐसा जो नाम है दह अत्यन्त प्रतिष्ठित होता है । नामके अक्षर दो अथत्रा
९ सरस्वती देवतारो लक्ष्य करके की घानिवाठी इषटि * सरस्वती * कदलाती हे
२५... चोमिं तीरारा, चींथा और पॉवर्वों दर्ग और य, र, के, व, द इन वर्णोंको धोष कहते
हैं। य, र, ठ, व इन चार वर्गोंदो अन्त स्य कहते दैं। जिस शब्दमें रुपरॉसेंगे यदला स्वर
था, ऐ छिंवा थी इगमेंगे कोई एक होता हे, उस शाव्दको * बद* कदते दैं। ( देखिये सन
काकाउ 1 पुजका नामकरण करते समय पिता अपने बाप, दादा भीर परदारा इन तीनॉंमेंगि
फिसी एकका नाम रखे। व नाम सडुष्यसे मिन शर्थात, फ्सी देवताके सयेमें हड दो गया दो;
गौर वद नाम शतुके छ़िए रु न डुआ हो 1
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