सवत्प्रवर्त्तक - महाराजा - विक्रम | Savtpravarttak Maharaja Vikram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द् लिटिकर मेजने के छिये माहिक और पत्रिक द्वारा विनति की, तदट्सार मेरे पर भी लेखके ल्यि संमितिका आमत्रण आया 1 उस समय में सौराप्ट्म प्रसिद्ध श्रीमहुवावन्दरमें शासनसभ्रा परमोपकारी, परमकृपाछ, पूउयपाद आचाये श्रीविजयनेमिम्ररीथरजी महाराजकी निश्ामे विकम संबधी ऐतिंहाप्तिक सामग्रीका यथादाक्ति अन्वेपण पर पुज्य गुरु देवसी कृपासे फुल्सकेप कागजया २२ पेजका शुजराती लेख लिखकर समितिकों मेज था, वह देख ' मालयपत्ि 'चिक्रमादित्य ” के देडींगसे उस अफमें छप चुवा हैं| # उपयुक्त लेख लिखते समय पूज्य पन्यास प्रबर श्रीदुमशीठगणि महाराण रचित शोकरद्ध श्रीविक्रमचरिन्र एदते समय उसका अनुवाद वरने की मेरे दिट्में इच्छा जाग्रत हुई। लैसे जैसे में पिच्मचरत्र जागे जांगे पढ़ता गया वैतते देते उसमें नीतिशासफ उपदेयफ छोफ़ ठोससे भरे हुए देते तो छोड़ी को अति उपयोगी होगा ऐसा जानकर उसका अनुवाद करनेरी अमिलपा तीव्र होने लगी, परत अनेक प्रकारकी अन्य प्रदृद्तियी के कारण अभिरापा मनमें ही रही । चातुर्मास पूर्ण होने के बादमें पूज्य गुस्देपक साथ महुवाति श्रीपंदम्बगिरिजी अति विहार हुआ और वह्दा आते ही परमपावनफुरी श्रीतीर्थयागादि श्रवृत्तिम रुगे, बेंति गिरिगान श्रीसनुतय समहातीररी याना करके नल पान पिन रसिद्सपलवलेक ४ यर नकल *+ यद लेस छोटी पुस्तक साकारम सुन्ातीरम छप ब्ूका दै। उम्यप्य डोनेसे अप पद पुरितका पुन सचिश्र सूप छपने थाली है।




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