मुद्राराक्षस | Mudra Raksasa

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Mudra Raksasa by विशाखदत्त - Vishakhadatta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गज सुधारकों की पयोप्त दिल्लगी की दे। इस पुस्तक में हास्यरस अच्छा मिश्रण है । नमूना नीचे दिया जाता दै-- स्थान--यमपुरी ( यमराज वैठे हैं और चित्रगुप्त पास खड़े हैं ) यमरशज--भला पुरोदित के कर्म्म तो सुनाओ 1 चित्र०---महाराज, यदद झुद्ध नास्तिक है, केवल दूं से यज्ञोपवीत 1 है, ब्द ती इसी शोक के अनुरूप दे अंतः शाक्ता बढ़ि: देवा; समामध्ये च वै ्णवा: | नानारूपघरा; कौला. विचरन्ति मददीतढे | इसने शुद्ध चित्त से ईश्वर पर कभी विश्वास नहीं किया, जो जो एजा ने उठाये उसका समर्थन करता रहा ओर टफेके पर धर्म कर इसने मगसानी व्यवस्था दी, दक्षिणामात्र दे दीजिये फिर जो पे इसी में पण्डितजी की सम्नति है, केवक इधर-उधर कमंडलाचार इसका जन्म बीता और राजा के संग से मांस मद्य का भी बहुत किया, सैकड़ों जीव अपने हाय से बध कर डाले । पम०---(पुरोदित से) थोछ दे प्राह्मणाधम ! द्‌ अपने अपराधों का उसर देता है ? पुरोडित्त--मददाराज, मैं बदा उसर दूँगा, वेद पुराण सच उत्तर देते दें । परम०--रू्गे कोड़े, दु्ट बेद-पुराण का नाम छेता है । [ल-जो भाशा ( कोड़े मारता है 21 पुरोहित ०--दुद्दाई दुद्दाई, मेरी बात तो सुन सीजिए 1 यदि साँस युरा दे हो दूध क्यों पीते हैं, दूध भी तो मांस दी दे; और अन्न क्यों हैं, झ में थी तो जीद है; और दैसे दी सुरापान बुर है लो देद में पे क्यों लिखा है; झौर महाराज, मैंने जो यकरे खाए वह जगदम्या पने बलि देकर खाएं, अपने हेतु कमी इस्या नहीं वी, और न अपने




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