सनाई | Sanai

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Sanai by बांके बिहारी - Banke Bihari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इंरान के सूफ़ी कवि पद जब सक साप सेरे हृदय में निवास करते हैं तय तक बह 'सांसारिक पीड़ाओं का अनुभव भी नहीं कर सकता |” ( लि० हि० प०, जिल्दू २, पू० देएछ ) सनाई की सृस्यु सन्‌ ११३१ इं० में हुई । उनकी प्रमुख रचनाएँ निन्ननलिखित हैं :-- दीवाल 1 हुदीक्ूल दुक्नीकत 1 तरीक्ुत-तहदक्वीक्त । सुरीदनामा | कारनामा । घ्यक्लनामा 1 तप. दर सेटल इवालल उललमर्‌ 1 । इश्कनामा




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