अलंकार परिचय | Alankar Prichaya

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Alankar Prichaya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हे (४ माय गे है भय भी पते सन बन च्न्न् (है) श्रह लि बरगद हैं मुझे बात हो विस दिस ऋलयारा हैं नहीं प्रा मेरा । ईबकयाता है न (0) स्राइुस करता है (२) चैन पाता है) (४१ रे प्रेम में हो शुक्र बसदल कोने कयल उसीसें होते 'टल चत हैं । (राइस से (0) पीपल (२) दिलते हुए पत्तांबालां यस > (६) डो बनायमान ने दो (२) पदाह) ४-रलेप जप पद में प्धिक 'पदाले शरद या शब्दों का प्रयोग पिया जाप । ( १) धलिहारी शप फृष को शुभ चिस घूंद ने देदिं । (अर्थ-राजा धर फूप गुण पिना कुदद मी नहीं देते ) यहाँ गुण ध्ज अये है पक रात के साथ लगता है भर दूसरा शूप फे साध- पि गाज़ा फ साथ गुण का 'यथ ह-सदूसुण दौर फूप के साथ गुण फा 'र्थ दै-रस्सी । (+ ) पानी गये न उपर सोती मानुस्य चून 1 « पानी नाश हो जानें से माती मनुष्य शोर शून किसी चाम थे मद्दीं रहते ) यहाँ पानी के तीन 'र्थ है-- मोती के साध--घाय या कान्ति मनुष्य वे साध--इजत या प्रतिष्ठा चूने के साथ--जल |




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