टानिया | Taniya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.76 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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मक्सिम गोर्की - maxim gorki
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श्री छबिनाथ पाण्डेय - Shri Chhabinath Pandey
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( हे ३
“माइयो, नमस्कार । ईश्वर आपके कायें में सहायक दो !”
खुले दरवाजे से द्ोकर यफं की तरदद उंडो चायु आ रददी थी.
जिसके स्पर्श से उसके पेरों में भाफ के जलविंदु छुराने लगे । वहू.'
देइली पर खड़ा-खड़ा हमें नव से शिख तक निद्दार रहा था।
उसकी 'चमकीली 'थऔर मुद्दी हुई मूँदों के वीच में उउज्वल दॉत
'चमक रहे थे । उसकी घासकट सचमुच मामूली घासकर्टों फे मेल
की नददीं थी । उसमें तीले-नीले वूटे बने थे, माणिक के छोटे-छोटे
'और पवमचसाते हुए चटनीं से उसकी शोभा छुदद 'और दी दो पद
थी । घड़ी की चेन घासकट के ऊपर लटक रद्दी थी ।
यद सिपाद्दी बड़ा मनोहर व्यक्ति था, लंचा था, सस्थ था।
उसके गाल शुलावी रंग के थे, बड़ी-वड़ी और सुडौल ाँखों में
सौददादं मलक रद्द था, दप्टि बढ़ी दी 'माहमादकारिणी थी ।
उसके सिर पर एक सफेद 'और देदीप्यमान टोपी थी । 'चोगा
बहुत साफ-छुथरा था, उसमें किसी प्रकार का घब्वा नहीं था ।
उसके नीचे से जुकीलें सिरे के बढ़िया और .काले-काले चूट
मॉक रहे थे । दर
भंडारी ने-उससे नम्नतापूवक द्वार बंद: कर देने को कहा ।
सिपाद्दी ने विना किसी इतावली के किवाइ प्रिपका दिए, और
। लाकर इस लोगों से . मालिक के घारे में प्रश्न करने लगा । इस
| लोगों ने एक साथ ही बोलना छारंम किया 'और घसे समकायाः,
। कि सालिक पका घूत॑, दुराचारी और व्यत्यंत . क्रूर दै। बढ
शुलामों से पशुन्तुल्य काम लेता है । कहने का मतलव यदइ कि
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