विश्व इतिहास कोष [खण्ड ५] | Encyclopedia Of World History [Khand 5]
श्रेणी : इतिहास / History, विश्व / World
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.55 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विश्व-इतिहास-कोप
करार
घाकाश मण्डलीय सूर्य्य, चन्द्र तथा झ्न्य नक्षत्रों की
स्थिति का ज्ञान कराने वाला विज्ञान, जिसकी उत्पत्ति का
इतिहास बहुत प्राचीन है ।
झाकादा मण्डलीय नक्षत्रो का ज्ञान आादिमकाल से ही
मनुष्य के श्रघ्ययन की एक श्रनिवार्य वस्तु रहा है । सृष्टि मे
श्रवतीरणुं होने के साथ ही मनुष्य जब देखता है कि प्रतिदिन
नियमित रूप से सूर्य उसको प्रकाश प्रदान करता है श्र
उसके श्रस्त होते ही सृष्टि मे घोर श्रन्वकार छा जाता है तथा
उस घोर श्रन्धकार के श्रस्तर्गत श्राकाश मण्डल मे हजारो
नक्षत्र जगमगाने लग जाते हैं । चन्द्रमा दिन प्रतिदिन घटता
ग्रौर बढ़ता हुआ उसकी रातों को सुन्दर बना देता है । तब
स्वभावत उसके मन मे प्रह्न होता है कि यह सब क्या है ?
मनुष्य की यही जिज्ञासा श्रागे जाकर खगोल शास्त्र,
गणित दास श्रोर ज्योतिष शास्त्र के रूप में विकसित होती
है । खगोल शार, गरिगत ज्योतिष श्रौर ज्योतिष दास मनुष्य
की इसी जिज्ञासा-बृत्ति के क्रमागत विकसित रूप है । जिस
प्रकार चिकित्सा विज्ञान मे, दारीर शास्त्र ( एनाटोमी ) का
का विकास शरीरक्रिया विज्ञान मे ( फिजियालाजी ) श्रोर
उसका विकास सम्पूर्ण चिकित्सा शास्त्र के रूप मे होता है
उसी प्रकार खगोल दशास्र के साथ गरिएत ज्योधिष श्रौर उसके
पश्चाद् समस्त ज्योतिष शास्त्र का विकास होता है । इसलिये
इन तीनों विषयों का विवेचन ज्योतिष शार के विवेचन मे
करना ही विशेष उपयुक्त रहता है ।
सेकिन भाज के युग में मनुष्य ने भ्पनी वैज्ञानिक शक्ति
से खंगोल विज्ञान में जो श्राश्चर्यजनक उन्नति करली है उसके
कारण इस विज्ञान ने एक स्वतन्त्र विज्ञान का रूप घारण
कर लिया है श्रोर इसीलिए इस पर श्राज कल स्वतस्त्र रूपसे
विवेचन करने की श्रावश्यकता समझी जाती है ।
खगोल-विज्ञान का विकास, मनुष्य की इस जिज्ञासा घृत्ति
के कारण सभी देशो मे भिन्न २ रूपों में हुआ, मगर इस शास्त्र
को वैज्ञानिक रूप सबसे पहले किस देश में मिला, इस विषय
में इतिहासकारो के अन्तर्गत बडे मतभेद हैं।
प्रोफेसर न्हिटनी, कोलब्रक इत्यादि विद्वानों के मत से
भारतवर्ष मे खगोल विज्ञान श्रौर ज्योतिष का वैज्ञानिक ज्ञान
वेबीलोनियन श्रौर युनानी सभ्यता से श्राया शरीर बरजेस के
समान श्रप्रेज विद्वानों के मत से भारतवर्ष श्रपने ज्योतिष
ज्ञान के लिये किसी का ऋणी नही है ।
ज्योतिषशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रन्थ “सुर्यय सिद्धान्त” मे
खगोलशास्र भर ज्योतिषशास् की उत्पत्ति का. विवेचत
करते हुए लिखा है कि--
“'सवुयुग के कुछ केष रहने पर 'मय” नामक महान श्रसुर
ने सब वेदागो मे श्रेष्ठ सारे ज्योतिषपिष्ठो की गतियो का
कारण बताने वाले, परम पवित्र शरीर रहस्यमय उत्तम ज्ञानको
जाननेकी इच्छासे कठिन तप करके सुय्य भगवान् की
झाराषना की । उसकी तपस्या से सल्तुष्ट होकर सुर्य्य भगवान्
ने झपने एक श्रनुचर के द्वारा सबसे पहले उसको श्राकाश
मण्डलीय ग्रहो का रहस्य बतलाया ।”
इस उद्धरण से ऐसा प्रतीत होता है कि खगोल-धास्त्
झोर सुर्य्य सिद्धात्त का सबसे पहला ज्ञान बेबिलोनियन श्रौर
झसीरियन या भ्रासुरी सस्कृति के लोगों को प्राप्त हुआ भौर
«वहीं से यह ज्ञान युनान श्रौर भारतवर्ष में साथ २ श्राया 1
डा० गोरखप्रसाद भ्रपने भारतीय ज्योतिष के इतिहास मे
लिखते हैं कि “प्राचीन समय मे बाबुल लोगो का-खगोलशास्तर
धौर ज्योतिष का ज्ञान बहुत बढा बढ़ा था । थे लोग टाइप्रिस
शोर यूफ़ेटीज नदी के मध्य की तथा समीपवर्ती भूमि पर
रहते थे । इन लोगो ने ग्रहणो की भविष्यवाणी करने के लिए
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