बृहत् साहित्यिक निबंध | Brihat Sahityik Nibandh

Brihat Sahityik Nibandh by रामावतार त्रिपाठी - Ramavatar Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रस का स्वरूप ४ जिससे चक्ष इत्यादि लौकिक बाह्यकरणो की श्रपेक्षा नहीं होती श्रौर न परिपक्व योगियो के ज्ञान के झन्तगंत श्राती है जिसमे भ्रन्य सासारिक ज्ञय पदार्थों का सस्पशं भी नहीं होता श्रौर जिसका पय॑वसान केवल श्रपनी श्रात्मा मे होता है । न यह तटस्थ की चित्त वृत्ति के रुप मे श्राती है न प्रमाता की न प्रमेय की । न स्वगत न परगत । इन सबसे विलक्षण रूप मे ही इसका प्रतिभास होता है । यह श्रपनी परिमित श्रात्मा के रूप में भी प्रतिभासित नहीं होती श्रौर न श्रन्य की भ्रात्मा के रूप मे प्रतिभासित होती है । अ्रतएव इसमे श्रन्य प्रकार की चित्तवृत्तियो के जनन की भी क्षमता नहीं होती । श्राद्यय यह है कि लोक मे किसी घटना को हम किसी न किसी लौकिक भाव के परिप्रेक्ष्य मे देखते हैं । वह या तो हमें भ्रपने से सम्बद्ध प्रतीत होती है या कात्रु से या तटस्थ से 1 किन्तु काव्य मे साघारणी करण हो जाने से वह घटना हमे न तो स्वसबद्ध प्रतीत होती है न शत्रू सम्बद्ध और न तटस्थ सम्बद्ध । श्रतएव जिस प्रकार लोक में किसी घटना को देखकर हमारे अन्दर कोई नई भावना श्रौर प्रतिक्रिया जायुत होती है वैसी भावना श्रौर प्रतिक्रिया काव्य मे उद्भूत नहीं होती । लोक मे शात्र, के उत्साह को देखकर हमारे अन्दर क्रोघ उत्पन्न होता है, मित्र के उत्साह को देखकर हमारे श्रत्दर उत्साह होता है। ऐसी ददा मे अपनी भावना के श्रनुकुल किसी न किसी प्रकार की प्रतिक्रिया श्र प्रवृत्ति मी हमारे भ्रन्दर जागृत हो जाती है । किन्तु यहा तो सवेदना की विश्नान्ति हो जाती है श्रौर रसन या श्रास्वादन रूप व्यापार से हम उसे ग्रहण कर लेते हैं । इसीलिये उसे हम रस कहने लगते हैं। श्रमिनव गुप्त के मत मे यह शझ्रास्वादन ही रस है । श्राद्यय यह है कि भ्रभिनव युप्त ने स्पष्ट रूप मे रस को सहुदय-सम्बद्ध कर दिया है भर रस के सहदय द्वारा यु्हीत रूप की ही व्याख्या की है। रस की थ्रलौकिकता के ही कारण इसके कायें कारण श्रौर सहकारी कारणों को विभाव, श्रनुभाव श्रौर सचारी भावों को श्रलौकिक सज्ञा से भभिहित किया जाता है। रस के स्वरूप के विषय मे श्रभिनव गुप्त का यही मत है । परवर्ती काल मे अभिनव का काव्यशास्त्र पर व्यापक प्रभाव रहा है। रस- स्वरूप के विषय मे इन्ही की मान्यता प्रतिष्ठित रही श्र परवर्ती श्राचाये उसी की व्याख्या करते रहे । रस स्वरूप के विषय मे विस्तृत प्रकाश डालने वाले दो प्रमुख श्राचाय हुये हैं--विस्वनाथ श्रोर पण्डितराज । श्रत इन दोनों श्राचार्यों के रस स्वरूप पर प्रकाश डाल लेना श्रप्नासगिक न होगा । विर्वनाथ का रस स्वरूप-विइ्लेषण तल डी ने रस स्वरूप के विश्लेपण मे निम्नलिखित दो कारिकायें सत्वोद्रेकादखण्डस्वप्रकाशानन्दचिन्सय ॥ वेद्यान्तरस्पर्शयून्यों ब्रह्मास्वाद सहोदर ॥।




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