भारतीय - भौतिक - विज्ञान | Bharatiy Bhautik Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.78 MB
कुल पष्ठ :
111
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जगन्नाथ प्रसाद शर्मा - Jagannath Prasad Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विज्ञान पुरुष श्पर
सुखदुख:का भोग प्रकृति ही करती है, चेतन नहीं, यह दोनों में
वेधम्य है । आयुर्वेदका त्तेत्रज्-जीव सवगत-सवब्यापी नहीं है
किन्तु ऋ्वसवगत एक देशी होते हुए भी नित्य है, घर्माधमे-कर्मा
कमेके श्नुसार अनेक योनिमें विचरता है। जीबवात्मा परम
सक्षम ्नुमानसे ग्रहण योग्य चैतन्य है, शाश्वत अर्थात् नित्यहै ।
माता-पिताके रज-वीय-संयोगसे प्रकट होते हैं। इसी अवस्थामें
पंचमहाभूत शरीरी आत्मा संयोगस कम परुप कहा जाता है।
घ्यायुवेदका भिमत यही कमें पुरुप है। इसमें १६ गण माने
गये हैं। १. सुख, २. दुःख, ३. इच्छा, ४. द्रेघ, ९. प्रयत्न
प्राण ( श्वास लेना ), ७ झपान ( मल-त्यार ), ८ उन्मेष-
निमेष ( नेत्रों को खोलना मंदना ), £. बुद्धि, १०. मन ( इन्द्रिय
प्रेरणात्मक शक्ति >, ११. संकल्प, १२. विचारणा, १३, स्मृति,
१४. विज्ञान, १५. झष्यवसाय और १६, विषयोपलब्धि । इसी
प्रकार दाश निक और झ्रायुर्वेदिक पुरुषके श्तिरिक्त एक साहित्यिक
पृरुष की भी कल्पना की जा सकती है । पहतता दाशनिक परुष
सूक्ष्म है और आयुर्वेदिक पुरुपका प्रवाह स्थूलताकी आर है ।
यह प्राकृतिक है, तकपूण, बुद्धिवाद और कल्याणकारी भावनाओं
से पूर्ण है । यदि पहला सत तो यह चित समें छः रस ही
हैं । उससे विशेष द्ानन्दकी झनुभूतिके लिये जिस साहित्यिक
पुरुपकी कल्पना की जा सकती है, वह नो रसवाला श्ानन्द
वघक है । उन छः रसोंका अस्वादन जिह्ला कर सकती है; किन्तु
इन ६ रसों की अनुभूति हृदय करता है। वह पुरुष प्रकृति श्यौर
चेतन सहयोगसे हुआ । यह स्ष्टिकता विरड्निकें प्रसादसे
सरस्वती के पुत्र रूपस प्रकट हु थ्रा छोर काव्यपुरुप कहलाया । कोमल
मावनाएँ सरस्वती रूप और रमणीय शब्दाथ उससे उत्पन्न पत्र
के रूपमें है । उसका आत्मा रस है, जो नो प्रकारोंमें विभक्त है ।
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