भारतवर्ष की खनिजात्मक सम्पंत्ति | Bhaaratavarshh Kii Khanijaatmak Sampatti

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Bhaaratavarshh Kii Khanijaatmak Sampatti by निरंजनलाल शर्मा - Niranjan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९ ) उसका दफ़्तर लन्दन की जगह रंगून में बनाया गया । इस कम्पनी ने अपनी पूंजी के लिये दस दस रुपये के दो करोड़ शेअर रक्‍्खे हैं । भमोगर्भिक अनुसन्धानों से पता चला है कि बाडविन का चाँदी-सीसा और जस्ता कां जमाव संसार में सब से बड़ा और उत्तम जमाव है । इस जमाव के . दो भाग बहुत प्रसिद्ध हैं एक को चीनी वाला जमाव और दुसरे को “शान का जमाव” कहते हैं । इनमें पहला जमाव अधिक बड़ा है । उसमें चाँदी-सीसा और जस्ता की खनिजों का ठोस जमाव ५० फीट से १०० फीट तक चौड़ा और १००० फीट लम्बा है। इस जमाव में किनारों की ओर उपयु क्त खनिजों के साथ ताँबे की भी खनिज मिली हुई पाई जाती है । इस जमाव से लगभग १००० फीट की गहराई तक की सब खनिज निकाली जा चुकी है । इस खान में “टाइगर नामक सुरंग सब से बड़ी है। इस सुरंग की खुदाई अप्रैल सन्‌ १६१४ इई० में आरम्भ हुई थी और सितम्बर सन्‌ १६१६ में समास हुई । सुरंग की चौड़ाई ६ फुट और ऊँचाई ८ फुट है । इसमें दो ट्राली-लाइनें हैं जिन पर होकर खनिजों से भरी हुई ट्रालियाँ बिजली के इज्िन से फोलाद की रस्सी द्वारा खींची जाती हैं। सुरंग की लम्बाई दो मील है और यह प्रथ्वीतल से ६५३ फीट नीचे है । जून १६३४ ई० में वाडविन की कुल खनिजों का परिमाणु ४०६२५११ टन अनुमान किया गया था जिसमें घातुएं लगभग २४६ प्रतिशत सीसा, १४८ प्रतिशत जस्ता, ०८४ प्रतिशत ताँबा और १८९ औंस चाँदी ( प्रति टन सीसा ) के हिसात्र से होंगी । इस मात्रा में ( २७००० )) सँतीस हज़ार टन ताँवे की खनिज सम्मिछित है । सन्‌ १६३४ इ० में बाइविन की खान में एक करोड़ रुपये से अधिक का सीसा और ७४ लाख रुपये से अधिक की चाँदी उत्पन्न हुई थी । (५ ) ताँबा ताँबे की खनिज अधिकत: गंधकदार सम्मलेन ( सम्मिश्रण ) होती हैं । उसकी मुख्य स्वनिज सोनामाखी ( (पक्रीए0] 190१ 01 ए0]ज0ा [० ) है जो ताँबा, गंघक और लोहे का सम्मेलन है । यह सोने के समान पीली होती है। परन्तु इसके पाउडर का रंग काला होता है । या तो यह खनिज बिज्लोर की घारियों में अन्य धातु खनिजां के साथ मिलती है अथवा परिव्तित शिलाओं में इसका जमाव पाया जाता है । प्रत्येक दशा में यह खनिज प्रथश्वी के अन्दर से अत्यन्त गरम जल या घोल द्वारा लाकर जमा की गई होगी । ये गम जल या घोल प्रायः उन आग्नेिय पिशणडों से निकले थे जो प्रथ्वी के अन्तस्थल में ठंडे पढ़ते जा रहे थे । सोनामाखी से ताँबा भट्टियों में अनेक प्रयोगों के पश्चात्‌ प्राप्त होता है । पढ़िले इस खनिज को खूब तपाया जाता है जिससे इसमें से गं घक का बहुत सा झ्रंश निकल जाय । उस समय तांबे, लोहे और गंघक का एक निविष्ट ( ए0110९ा1५िक्र/€प ) सम्मेलन रह जाता है जिसको मेठ ( ॥क्रघ0# ) कहते हैं । इसको भट्टियों में गलाकर लोहा और शेष गंघक दोनों को प्रथक कर दिया जाता है और इस प्रकार तांबा प्रात होता है । आधुनिक युग में ताँबे का मुख्य प्रयोग बिजली के तार




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