विशाल भारत भाग १० | Vishal Bharat Bhag 10
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
578.35 MB
कुल पष्ठ :
509
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री खीच्द्रनाथ ठाकुर
' कड़ी
कप रहे हैं।. सारे शहरके पघँघटको ्रॉँघीकी इवाने--चोटी
लूर पद बर्षाकि रुपमें आकाशके बादल धघरतीपर उतरते
हैं---घरतीकों पकड़ाई देनेके लिए।. ऐसे ही, पकड़कर --नमाकमोर डाला ।
'कहींसे खियाँ घाती हैं प्रथ्वीपर--बन्धनोंमें बंघनेके लिए । उठकर देखा, तो, गलीकी बत्ती घनघोर व्षार्मि शराबीकी
उनके लिए कम जगह की--तंग--दुनिया है,--थोड़े गदली प्राखोंकी तरदद दिखाई दी ।. आर गिरजाकीघ . छीका
झाइमियोंकी उतने दी में उनका भ्रपना सब-कुछ अंट शब्द मानों वर्षाकि शब्दकी चादर भोढ़कर आरा घमका .। दे
जानां चाहिए--उनकी श्रपनी सब बातें, सब व्यथाएँ, सब सवेरे जलकी घारा श्ौर भी तेज दो गई--घामको उसने
चिन्ताएँ । इसीसे उनके सिरपर घूँबट है, दा्ोरमें कंकण हैं, उठने दी नहीं दिया। .................
घरमें घाँगनका घेर दै । खियाँ सीमा-स्वगकी इन्द्राणी हैं । का 2. ना
भला, किस देवताके कौतुक-हाश्यकी तरह अपरिमित ं न
चंचलता लिये हुए, दमारे मुदकेमें, उस्र छोटीसी लड़कीका रेलिंग थासे चुपचाप खड़ी है । कटा
जन्म हुआ १. मा उसे युस्सेमें कदती दै--''ढाइन” ; बाप उस्रकी बहनने भाकर उससे कहा--“मा बुलाती हैं
उसे हँसकर कहता दे--+“पगली”” ।
बह भागते हुए महरनेका पानी दै, शासनके कंकढ़-
त्थरॉको लॉघ-लॉचकर चलती दे । उसका मन मानों वेणुदचा की
ऊपरकी ढालीका पत्ता है, दमेशा फरफर कॉँपता रहता दे ।
ग्राज देखूं, तो, वह अ्रशान्त लड़की
भुकककर चुपचाप खड़ी दे--वर्षा घकें इन्द-घनुषकी तरह ।
उसकी. बढ़ी-बढ़ी दो काली भाँखें ध्राज अचंचल हैं--
. तमालवूचाकी डालीपर सेदसे भीगे. पंखवाली चिरेयाकी तरह ।
लि बसे ऐसी स्थिर कभी नहीं देखा । _ मालूम होता है
मानो चल़ते-चलते एक जगदद ठिठककर सरोवर हो गई दे ।
हु बरस रहा है।
लड़की ज्यों-की-त्यों खड़ी रददी ।
सजदनवपावकु्लबभथर कप
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