विशाल भारत भाग १० | Vishal Bharat Bhag 10

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बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi

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रामानन्द चट्टोपाध्याय - Ramanand Chttopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री खीच्द्रनाथ ठाकुर ' कड़ी कप रहे हैं।. सारे शहरके पघँघटको ्रॉँघीकी इवाने--चोटी लूर पद बर्षाकि रुपमें आकाशके बादल धघरतीपर उतरते हैं---घरतीकों पकड़ाई देनेके लिए।. ऐसे ही, पकड़कर --नमाकमोर डाला । 'कहींसे खियाँ घाती हैं प्रथ्वीपर--बन्धनोंमें बंघनेके लिए । उठकर देखा, तो, गलीकी बत्ती घनघोर व्षार्मि शराबीकी उनके लिए कम जगह की--तंग--दुनिया है,--थोड़े गदली प्राखोंकी तरदद दिखाई दी ।. आर गिरजाकीघ . छीका झाइमियोंकी उतने दी में उनका भ्रपना सब-कुछ अंट शब्द मानों वर्षाकि शब्दकी चादर भोढ़कर आरा घमका .। दे जानां चाहिए--उनकी श्रपनी सब बातें, सब व्यथाएँ, सब सवेरे जलकी घारा श्ौर भी तेज दो गई--घामको उसने चिन्ताएँ । इसीसे उनके सिरपर घूँबट है, दा्ोरमें कंकण हैं, उठने दी नहीं दिया। ................. घरमें घाँगनका घेर दै । खियाँ सीमा-स्वगकी इन्द्राणी हैं । का 2. ना भला, किस देवताके कौतुक-हाश्यकी तरह अपरिमित ं न चंचलता लिये हुए, दमारे मुदकेमें, उस्र छोटीसी लड़कीका रेलिंग थासे चुपचाप खड़ी है । कटा जन्म हुआ १. मा उसे युस्सेमें कदती दै--''ढाइन” ; बाप उस्रकी बहनने भाकर उससे कहा--“मा बुलाती हैं उसे हँसकर कहता दे--+“पगली”” । बह भागते हुए महरनेका पानी दै, शासनके कंकढ़- त्थरॉको लॉघ-लॉचकर चलती दे । उसका मन मानों वेणुदचा की ऊपरकी ढालीका पत्ता है, दमेशा फरफर कॉँपता रहता दे । ग्राज देखूं, तो, वह अ्रशान्त लड़की भुकककर चुपचाप खड़ी दे--वर्षा घकें इन्द-घनुषकी तरह । उसकी. बढ़ी-बढ़ी दो काली भाँखें ध्राज अचंचल हैं-- . तमालवूचाकी डालीपर सेदसे भीगे. पंखवाली चिरेयाकी तरह । लि बसे ऐसी स्थिर कभी नहीं देखा । _ मालूम होता है मानो चल़ते-चलते एक जगदद ठिठककर सरोवर हो गई दे । हु बरस रहा है। लड़की ज्यों-की-त्यों खड़ी रददी । सजदनवपावकु्लबभथर कप




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