पुनर्जन्म मीमांसा | Punarjanm Mimansha

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Punarjanm Mimansha by प्रो. नन्दलाल खन्ना - Prof. Nandlal Khanna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झा झ्ः हर पर ही (२) ही न ५७ बरेग ह . पुनजन्मसे सम्बद्ध कुछ समस्‍यायें हैं जिनका मेंने इस पुम्तक में उल्लेख नहीं किया । उदाहरणके लिये यह कि एक जन्म थर कर दूसरे जन्मके बीचमें अन्तर होता है यथा नहीं अर छागर होता हूं सो कितना ? इनके बारेमें मोन रहने का कारण यह है कि मुभे मालूम होता है कि प्रामाणिक घटनाओं और युक्तियोंके आधार पर इनके सस्बन्धमें कुछ नहीं कहा जा सकता । योगी और अआध्या- त्मिक उन्नतिके शिखरपर चढ़े हुए व्यक्ति छापने आन्तरिक अनुभव या योगहष्टिके आधार पर ही इन समस्याओ्योंके विषयमें प्रासासि- कता के साथ कुछ कह सकते हैं । लेकिन इस पुस्तकें प्रामाणिक घटनाओं और युक्तियोंकी सहायतास ही विचार करनेका प्रयत् किया गया है इसलिये इस प्रकारकी समस्यायें इस पुस्तककी सीमासे बाहर हैं । श्रीमती ऐनीबेसैर्ट का विचार है कि कई त्माएं पब्द्रह सौ वर्ष बाद जन्म लेती हैं इसका प्रमाण बह यह देती हैं कि आजकलके अंग्रेज लोग वैसे दी हैं जैसे पुरान रोमन लोग। इसलिये पुराने रोमन लोगोंकी आत्माओंने आजकल इंग्ोंड में जन्म लिया है । इस समयको प्द्रह सो साल गुजर चुके हैं इसलिये दो जन्मोंके बीचका अन्तर प्द्रहसो साल हुए । यह युक्ति _ ठीक नहीं प्रतीत होती क्योंकि अन्य कई थियासोफ़िस्टमी सब . श्रकारके लोगोंके लिये दो जन्मोंका अ्यन्तर पन्‍्द्रहसी वष नहीं मानते ...... बल्कि बहुत हालतोंमें इससे बहुत कम या अधिक मानते हैं जैसे . ..... कई लोगोंके लिये हज़ारों व और कइयोंके लिये छुल्लह्दी व । ऐसा ..... साननेमें क्या प्रमाण है? दूसरा झादयोप यह है कि एक दो उदाह-




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