कठोपनिषद | Kthopnishadh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
89.1 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)योगादप्रिविद्याप्युप निषदित्युच्य-
ते। तथा च वश्ष्यति--सग
_ ठोका अम्ृतत्व॑ भजन्तें” ( क०
उ० १।१। १३ ) इत्यादि ।
ननु॒ चोपनिषच्छब्देनाध्ये-
तारो ग्रन्थमप्यमिठपन्ति । उप-
निषदमधी पहे5ध्यापयाम इति च ।
एवं नेष दोषो5विद्या दिसंसार-
देतुविद्वरणादे। . सदेधात्वथस्य
ग्रन्थमात्रडसम्भवादिदायां च
शा
सम्भवात् । ग्रन्थापि ताद्थ्येन
तच्छब्दत्वोपपत्ते:, आयुर्वें घ्रत-
मित्यादिवत् । तसादिद्यायां
धुख्यया.. ब्ृत्योपनिषच्छब्दो
बर्तते अन्ये तु मक्स्पेति।.. ,
एवसुपनिपन्नि्ंचनेनैव विशि
_ छोड्धिकारी विद्यायापुक्तः । दिष-
विशिष्ट उक्तो विधायाः परं |
अर्थके योगसे “उपनिषदू कही.
जाती है | ““खर्गछोकको प्राप्त होने
वाले पुरुष अमरत्व प्राप्त करते हैं”
ऐसा आगे कहेंगे भी ।
ग्रज्ा--किन्तु अध्ययन करने
वाले तो “उपनिषदू” शब्दसे ग्रन्थ-
का भी उल्लेख करते हैं, जेसे--'इम
उपनिषदू पढ़ते हैं अथवा पढ़ाते
हैं”? इत्यादि ।
समाधान--ऐसा कहना भी.
दोषयुक्त नहीं है । संसारके हेतवृ-
भूत. अविद्या आदिके विशरण
आदि जो कि '“सदू? घानुके अर्थ हैं,
प्रन्थमात्रमें तो. सम्भव नहीं हैं
किन्तु विद्यामें सम्भव हो सकते हैं ।
ग्रन्थ भी विद्याके ही छिये है;
सलिये वह भी उस शब्दसे कद्दा
जा सकता है; जेते [ आयुदद्धिमें
उपयोगी होनेके कारण ] “ख्रत आयु
ही दे” ऐसा कहा जाता है|
इसलिये “उपनिषदू” शब्द विद्यामें
मुख्य बृत्तिसे प्रयुक्त होता है तथा.
ग्रन्थमें गोणी द्वात्तसे ।
इस प्रकार “उपनिषदू” दाब्दका
निवंचन करनेसे ही विद्याका विदिष्ट..
अधिकारी बता दिया. गया |...
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